माफ करो, याद रखो और स्वस्थ हो जाओ...

Webdunia
- सारिका मुछाल
 
अच्छी सेहत के लिए माफ करो पर भूलों नहीं...  
 
माफ कर देना केवल बड़प्पन का ही काम नहीं, इससे आपके मन को भी सुकून मिलता है। एक तरह से यह बिलकुल किसी चिकित्सीय थैरेपी की भांति प्रक्रिया होती है। तो बस एक बार आजमाइए 'फॉरगिवनेस थैरेपी' और महसूस कीजिए इसका कमाल।


 
 
कई बार मनुष्य के जीवन में कुछ ऐसे वाकये होते हैं, जो दिमाग में गहरे बैठ जाते हैं और किसी व्यक्ति-विशेष के प्रति हमेशा उसके गुस्से की आग को भड़काए रखते हैं। ऐसे में व्यक्ति वाकये के याद आते ही चिड़चिड़ा हो जाता है, क्योंकि वह गुस्सा निकाल नहीं सकता। यहाँ तक कि किसी खुशी की बात पर भी वह उस बीती बात को याद कर दुःखी होने लगता है। असल में इसलिए कि आपके मन की पीड़ा मिटाना जरूरी है। यह आपके हित में है। ऐसा करने से आपका क्रोध नुकसानदायक नहीं रहेगा।

इस विषय पर जॉन क्रिस्टॉफ अर्नोल्ड ने 'व्हाय फॉरगिव' नामक किताब लिखी है। जिसका तर्क है क्रोध या बदले की भावना को धो डालना। ऐसी समस्या का निराकरण यह है कि फॉरगिवनेस थैरेपी अपनाई जाए। आइए, जानते हैं यह थैरेपी क्यूं जरूरी है और कैसे कार्य करती है-

माफी क्यों  
 
यूं तो यह कोई नई थैरेपी नहीं है, लेकिन अब यह वैज्ञानिक रूप से प्रामाणिक प्रणाली बन गई है। सभी काउंसलर्स, साइकैट्रिस्ट भी इसका उपयोग कर रहे हैं। सवाल यह है कि माफ क्यूँ किया जाए? महान बनने के लिए, भूल जाने के लिए या किसी ने कहा है इसलिए? 

माफी कैसे पढ़ें अगले पेज पर 

माफी कैसे 
सबसे पहले उस समस्या को पहचानें। उसके कारण और परिस्थितियों को समझें। बस, हल शुरू हो गया। कारण में कोई घटना, व्यक्ति का व्यवहार या प्रताड़ना हो सकते हैं। फिर यह सोचना शुरू करें कि ऐसा क्यों हुआ? 

अब विशेषज्ञों की बात मानें। जी हां! विशेषज्ञों के अनुसार माफ करने का तरीका यह है कि उस व्यक्ति की निजी, पारिवारिक और सामाजिक परिस्थितियों में स्वयं को रखकर देखा जाए। उस स्थिति को जीकर देखें। इससे आपको सब स्वाभाविक लगेगा।

सामने वाले ने जो कष्ट दिए थे, वे कुछ हल्के लगेंगे। इस अभ्यास को दोहराएं। जी हां! माफ करके भूल जाओ गलत है, क्योंकि दर्द को भूलना नामुमकिन है। माफ करके याद रखो यही सिद्धांत है। 

बस याद रखना है व्यक्ति की परिस्थिति को। बार-बार जब आप इस स्थिति में जिएंगे तो आपको उसका व्यवहार उचित लगने लगेगा और यहीं से शुरू होगा इलाज। बदले की भावना के अंत के साथ गुस्सा कम होता जाएगा। वह बुरी घटना स्वाभाविक लगने लगेगी।


 

यह थोड़ी धीमी प्रक्रिया है, लेकिन वाकई कारगर है। महसूस करके निजात पाना है, खुद से इलाज करके उबरना है। आजमाकर देखिए।
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