हर हाल में बचें डिप्रेशन से, वरना....

Webdunia
डॉ. सतीश अग्रवाल 
 
डिप्रेशन या मनो अवसाद आधुनिक समाज में एक बहुप्रचलित मानसिक रोग की श्रेणी में आता है। संभवतः समय के साथ बढ़ते घरेलू विवाद, आपसी मतभेद, कार्य की व्यस्तता, दूसरों से आगे निकलने की होड़, अपने मनोनुकूल कार्य का न होना, दफ्तर में अपने से ऊपर बैठे अधिकारी द्वारा तिरस्कृत किया जाना, बढ़ते तनाव व गलत संगत की वजह से किसी नशे का आदी हो जाना, बदलते समय के अनुरूप अपनी सोच में बदलाव न लाना, लंबे समय से किसी बीमारी से पीड़ित रहना तथा सबसे महत्वपूर्ण कारण अपने अंदर की प्रतिभा तथा क्षमता को नजरअंदाज कर अपने आपको दूसरों से हीन समझना डिप्रेशन के मुख्य कारणों में से है। 
 
बड़े तो बड़े, बच्चे तथा युवा भी तेजी से इस रोग का शिकार हो रहे हैं। पढ़ाई का अत्यधिक बोझ, घर पर होमवर्क का टेंशन, माता-पिता द्वारा बच्चे को स्कूल में कम अंक मिलने पर डांटना, बच्चों को अपनी रुचि अनुरूप कार्य करने से रोकना आदि मुख्य कारण हैं। अंततः कारण अनेक पर बीमारी एक यानी मनो अवसाद। इससे ग्रसित व्यक्ति में ऊर्जा तथा उत्साह की कमी, कार्य के प्रति विमुखता, भूख तथा नींद में कमी, जीवन के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण, किसी भी नए कार्य या जिम्मेदारी का निर्वाह करने में डर महसूस करना, शरीर भार में कमी होना, शरीर में थकान व कहीं भी दर्द का होना, एकाग्रता की कमी होना तथा कभी-कभी मन में आत्महत्या की भावना पनपना आदि इस बीमारी के मुख्य लक्षण हैं। कई बार शारीरिक लक्षण, मानसिक लक्षणों की अपेक्षा ज्यादा प्रबल होते हैं। 
 
आधुनिक शास्त्र डिप्रेशन का कारण मस्तिष्क में सिरोटोनीन, नार-एड्रीनलीन तथा डोपामिन आदि न्यूरो ट्रांसमीटर की कमी मानता है अतः इन्हीं न्यूरो ट्रांसमीटर की सामान्य मात्रा को बनाए रखने वाली औषधियां जैसे ट्रायसायक्लिक वर्ग या स्फेसिफिक सिरोटोनीन री-अपटेक इनहीबिटर वर्ग की दवाइयाँ मुख्य रूप से दी जाती हैं। इनके अपने फायदे व नुकसान हैं।
 
जहां तक आयुर्वेद दृष्टिकोण की बात है, डिप्रेशन मुख्य रूप से वात दोष की अधिकता से होने वाला रोग है। इसके लिए शास्त्र में विभिन्न चिकित्सा विकल्प उपलब्ध हैं, जो प्रभावी होने के साथ-साथ पूर्णतः हानिरहित हैं। औषधियों के अंतर्गत ऐंद्री, शंखपुष्पी, वचा, जटामासी, सर्पगंधा, तगर, अश्वगंधा, अभ्रक भस्म, सारस्वतारिष्ट, ब्राह्मी घृत, सारस्वत चूर्ण, बृहतवान चिंतामणि रस आदि प्रमुख हैं। इसके अलावा शिरोधारा व नस्य का भी विधान है जिसके अंतर्गत औषधि क्वाथ को सिर पर तथा नासा में क्रमशः डाला जाता है। साथ ही साथ मरीज से निम्न बातों का भी पालन कराएं : 
 
खाली रहने की स्थिति में फालतू नहीं बैठें, अपितु उस समय में अपनी रुचि का कोई कार्य या किसी पत्रिका, पुस्तक आदि का वाचन करें अथवा अपने मित्रों के साथ किसी बौद्धिक विषय पर वार्तालाप करें।
 
सामने वाले व्यक्ति की जो बात अच्छी न लगे, उसे नजरअंदाज कर दें।
 
रोज प्रातःकाल अनुलोम-विलोम, प्राणायाम तथा ईश्वर का ध्यान करें।
 
अपनी गलतियों पर दुख करने की बजाए आगे से वे न हों, इसके लिए कटिबद्ध रहें।
 
यह मानकर चलें कि विषम परिस्थितियां जीवन का अभिन्न अंग हैं। 

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

कुत्तों के सिर्फ चाटने से हो सकती है ये गंभीर बीमारी, पेट लवर्स भूलकर भी न करें ये गलती

कब ली गई थी भारत के नोट पर छपी गांधी जी की तस्वीर? जानें इतिहास

सावन में इस रंग के कपड़े पहनने की वजह जानकर चौंक जाएंगे आप

क्या ट्रैफिक पुलिस आपकी स्कूटी की चाबी ले सकती है? जानें कानूनी सच्चाई और अपने अधिकार

किस मुस्लिम देश से भारत आए हैं समोसा और जलेबी, जिनके लिए तम्बाकू और सिगरेट की तरह लिखना होगी चेतावनी

सभी देखें

नवीनतम

सोमवार सुविचार: पॉजिटिव सोच के साथ करें हफ्ते की शुरुआत

बरसात में कपड़ों से सीलन की स्मेल हटाने के लिए ये होममेड नुस्खा जरूर आजमाएं

क्या कुत्ते के पंजा मारने से रेबीज हो सकता है? जानिए इस डर और हकीकत के पीछे की पूरी सच्चाई

अगर हाथों में नजर आ रहे हैं ये लक्षण तो हाई हो सकता है कोलेस्ट्रॉल, न करें नजरअंदाज

तेजी से वेट लॉस करने के लिए आज से ही शुरू कर दें इंटरवल वॉकिंग, हार्ट और नींद में भी है असरदार

अगला लेख