fear of war causing anxiety hindi: टीवी न्यूज, सोशल मीडिया और इंटरनेट पर जब से ऑपरेशन सिंदूर, पाकिस्तान की प्रतिक्रिया, मॉक ड्रिल और ब्लैकआउट जैसी खबरें आई हैं, तब से देश में एक मानसिक हलचल महसूस की जा रही है। न केवल बच्चे या बुजुर्ग, बल्कि सामान्य युवा और व्यस्क भी इन खबरों को सुनकर बेचैनी, डर, तनाव और थकावट जैसी मानसिक समस्याओं का सामना कर रहे हैं। इसे मनोवैज्ञानिक भाषा में “War Anxiety” या "युद्ध-आधारित चिंता" कहा जाता है। आधुनिक जीवनशैली में जब पहले से ही काम का तनाव, व्यक्तिगत जीवन की उलझनें और सोशल मीडिया का शोर है, तो युद्ध जैसी नेगटिव खबरें मेंटल हेल्थ को और ज्यादा प्रभावित करती हैं। तो आइए जानते हैं कि आखिर ये वॉर एंग्जायटी होती क्या है, इसके लक्षण क्या हैं और इससे कैसे बचा जा सकता है।
क्या है War Anxiety? (युद्ध से जुड़ी चिंता)
War Anxiety एक मनोवैज्ञानिक स्थिति है, जिसमें व्यक्ति युद्ध या संघर्ष से जुड़ी खबरों, वीडियो, या चर्चाओं को देखकर इतना प्रभावित हो जाता है कि उसे बार-बार डर, बेचैनी, असहायता और गहरी चिंता महसूस होने लगती है। यह एक तरह का "Second-hand trauma" है, यानी खुद पर नहीं, लेकिन दूसरों की पीड़ा को देखकर दिमाग पर असर होना। यह चिंता तब और बढ़ जाती है जब खबरें मॉक ड्रिल, बंकरों में रहने की जरूरत, बॉर्डर मूवमेंट्स या सरकार की चेतावनियों से भरी होती हैं।
क्या है एक्सपर्ट एडवाइस?
स्पिरिचुअल एवं क्लिनिकल साइकोलोजिस्ट डॉ. कामना लाड़ मानती हैं कि युद्ध जैसी खबरें सुनकर जो डर, घबराहट या तनाव महसूस हो रहा है, उससे डरने के बजाय, समझदारी से चीजों को देखने और उनका तार्किक विश्लेषण कर, उन्हें समझने की जरूरत है। वो सलाह देती हैं कि सबसे पहले सेकेंडहैंड ट्रॉमा को समझें। ऐसे समय में सपोर्ट ग्रुप्स से जुड़ना, दोस्तों और परिवार से संवाद बनाए रखना बेहद ज़रूरी है। मन में उठ रहे सवालों को अकेले न झेलें, उन्हें रियलिटी के फ्रेम में रखकर देखें, यानी ये सोचें कि डर की वजह कितनी वास्तविक है और कितनी काल्पनिक। जब भी मन में डर या बेचैनी हो, तो उसका तार्किक विश्लेषण करें। अक्सर हमारे दिमाग में आने वाले डर असलियत से कहीं ज्यादा बढ़ा-चढ़ा कर पेश होते हैं।
मनोवैज्ञानिक डॉ. कामना कहती हैं कि ऐसे समय में माइंडफुल रहना, यानी वर्तमान क्षण में जीना बहुत फायदेमंद होता है। रोजाना डीप ब्रीथिंग यानी गहरी सांसें लेने की आदत डालें, यह आपकी चिंता को तुरंत शांत कर सकता है। इसके अलावा, अपने रोजमर्रा के कामों पर फोकस करें, जैसे घर के छोटे-मोटे काम, पढ़ाई, कुकिंग या ऑफिस वर्क। ये सब चीजें दिमाग को स्थिर बनाए रखने में मदद करती हैं।
सेल्फ-केयर को प्राथमिकता देना भी बेहद जरूरी है। अच्छी नींद लें, संतुलित भोजन करें, पानी पीते रहें और खुद को समय दें। साथ ही, मीडिया एक्सपोजर को लिमिट करें, टीवी और सोशल मीडिया पर घंटों तक युद्ध संबंधी खबरें देखना आपकी चिंता को बढ़ा सकता है। दिन में एक तय समय पर ही न्यूज देखें और कोशिश करें कि भरोसेमंद सोर्स से ही जानकारी लें।
अगर किसी को पहले से ही एंग्जायटी या डिप्रेशन की समस्या है, तो बिना देर किए किसी एक्सपर्ट या काउंसलर से संपर्क करें। डॉ. कामना का मानना है कि यह समय आपको डराने का नहीं, आपको तैयार करने का है। जो भी चीजें की जा रही हैं, जैसे अलर्ट जारी करना, मॉक ड्रिल, ब्लैकआउट या अन्य प्रोटोकॉल, ये सभी हमें मानसिक रूप से स्ट्रॉन्ग बनाने के लिए हैं, न कि वीक। अंत में, वो यही संदेश देती हैं, स्वीकार करें, कि यह एक चुनौतीपूर्ण समय है, लेकिन उससे भागने के बजाय उसकी समझदारी से तैयारी करें। डर को मन में दबाकर रखने के बजाय, उसे स्वीकारें और उसका सामना करने की ताकत अपने भीतर जगाएं।
War Anxiety के लक्षण क्या हो सकते हैं?
अगर आप या आपके आस-पास कोई इन संकेतों को महसूस कर रहा है, तो सतर्क हो जाइए:
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हर थोड़ी देर में न्यूज चैनल या ट्विटर खोलकर अपडेट देखना।
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मन में बार-बार यही ख्याल आना कि कुछ बुरा होने वाला है।
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दिल की धड़कन तेज होना, पसीना आना या सांस फूलना।
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नींद न आना या डरावने सपने आना।
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हर आवाज से चौंक जाना।
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किसी भी सामान्य चीज पर भी तनाव महसूस करना।
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अकेलेपन की भावना और सामाजिक गतिविधियों से दूरी बनाना।
किन लोगों को War Anxiety ज्यादा प्रभावित करती है?
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वो लोग जो पहले से ही एंग्जायटी या डिप्रेशन जैसी दिक्कतों से जूझ रहे हैं
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जिनका कोई संबंधी आर्मी/डिफेंस में हो
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मीडिया पर ज्यादा समय बिताने वाले लोग
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अकेले रहने वाले या इमोशनली वीक व्यक्ति
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बच्चे, बुज़ुर्ग और महिलाएं भी इस प्रभाव से अछूते नहीं रहते
War Anxiety से कैसे बचें? कुछ सरल लेकिन असरदार उपाय
1. न्यूज की सीमित खपत करें: हर मिनट अपडेट देखने से तनाव बढ़ता है। दिन में एक बार किसी भरोसेमंद न्यूज सोर्स से जानकारी लें और फिर सोशल मीडिया से दूरी बनाएं।
2. पॉजिटिव रूटीन बनाएं और उसे फॉलो करें: अपने दिन को एक निश्चित ढांचे में बांधिए — व्यायाम, पढ़ाई, परिवार से बात, खाना और आराम। रूटीन दिमाग को स्थिर रखता है।
3. मेडिटेशन और योग करें: 5 से 10 मिनट का मेडिटेशन भी चिंता को बहुत हद तक कम कर सकता है। प्राणायाम, अनुलोम-विलोम और शवासन मानसिक शांति लाते हैं।
4. परिवार और दोस्तों से बात करें: अपने डर को मन में न रखें। भरोसेमंद लोगों से बात करें, उनके साथ समय बिताएं। संवाद चिंता को हल्का करता है।
5. Reality Check करें: हर खबर को सच न मानें। फेक न्यूज से दूर रहें। अफवाहों से दूर रहें और सोचें कि क्या वास्तव में स्थिति इतनी खराब है, या सिर्फ मीडिया उसे बड़ा बना रहा है।
कब लेनी है प्रोफेशनल मदद?
अगर आपकी चिंता रोजमर्रा के जीवन को प्रभावित करने लगी है, जैसे काम में मन न लगना, किसी से बात न करना, बार-बार डरना, तो यह संकेत है कि आपको किसी काउंसलर या मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से मिलना चाहिए। ऑनलाइन थेरेपी आज आसानी से उपलब्ध है और इसका कोई सामाजिक टैबू नहीं होना चाहिए।
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