'मोबाइल डेंटल क्लीनिक' से हुआ 3 लाख लोगों का नि:शुल्क उपचार : डॉ. दिल्लीवाल

सीमान्त सुवीर
देश के दंत चिकित्सकों की दुनिया में डॉ. सुरेन्द्र दिल्लीवाल एक जाना-पहचाना नाम है, जिन्हें किसी परिचय की जरूरत नहीं। डेंटल के क्षेत्र में करीब 40 सालों से अपनी सेवाएं देने वाले डॉ. दिल्लीवाल अपनी चेरिटेबल 'मोबाइल डेंटल क्लीनिक' चलते-फिरते अस्पताल से अब तक 3 लाख लोगों का उपचार कर चुके हैं, वह भी पूरी तरह नि:शुल्क। हैरत की बात तो यह है कि बिना किसी सरकारी अनुदान या संस्था से मदद लिए बगैर उनका 'मोबाइल डेंटल क्लीनिक' लोगों के घरों तक पहुंचकर उन्हें मुख कैंसर की समस्या से निदान दिलाने में महती भूमिका अदा कर रहा है। 
'वेबदुनिया' से एक विशेष मुलाकात में उन्होंने बताया कि मैंने इंदौर के डेंटल कॉलेज से 1973 में BDS किया और वहीं से मास्टर्स डिग्री भी ली। 2011 में मैं डेंटल कॉलेज से सेवानिवृत्त हुआ। 1973 में जब मैं पढ़ता था, तब एक मुख कैंसर का मरीज आया था, तब हमारे प्रोफेसर ने सबको इकट्ठा करके इस बीमारी के बारे में बताया था लेकिन बाद में मैंने देखा कि इस बीमारी से ग्रसित मरीजों की संख्या 30 से 40 प्रतिशत बढ़ गई। आज डेंटल कॉलेज में पांच चेयर हैं और सभी भरी रहती हैं।
 
69 वर्षीय डॉ. दिल्लीवाल के अनुसार, तम्बाकू, बीड़ी, सिगरेट और सुगंधित पान मसालों के कारण मध्यप्रदेश ही नहीं, बल्कि पूरे देश में मुख कैंसर के मरीजों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। मैं ऐसा मानता हूं कि ओरल सर्जन ही सबसे पहले मुख कैंसर की बीमारी के बारे में बता सकता है, उसे डाइग्नोस कर सकता है। अधिकांश लोग जब ओरल सर्जन के पास जाते हैं, तो मुख कैंसर की बीमारी उनके साथ होती है। आजकल बड़े ही नहीं बल्कि गरीब तबके के बच्चे भी इस बुरी लत में पड़ गए हैं। ऐसे में यदि कोई हमारे पास आता है तो हम शुरुआती दौर में उसका इलाज करने की स्थिति में रहते हैं। यह हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि है। 
उन्होंने बताया कि मैं जब 1982-83 डेंटल एसोसिएशन का अध्यक्ष बना, तब मेरा एक सपना था कि 'दवाखाना आपके द्वार' जाए। इस योजना में 'मोबाइल डेंटल क्लीनिक' की वैन गांव-गांव, गली-गली तक पहुंचे ताकि लोगों को उनके दरवाजे के आगे ही डेंटल हॉस्पिटल मिल जाए। मैंने चैरिटी के लिए देखे गए अपने इस सपने को साकार भी किया।

पिछले 20 वर्षों से हम अलग-अलग गांव में नि:शुल्क कैंप लगाते हैं और लोगों का उपचार करते हैं। अब तक हम 3 लाख से ज्यादा लोगों का बिना पैसे के उपचार कर चुके हैं। मेरी अत्याधुनिक 'मोबाइल डेंटल क्लीनिक' में दो चेयर रहती हैं, ठीक उसी तरह जैसी अस्पताल में रहती है। मेरा ऐसा मानना है कि इंसान को साल में कम से एक बार तो ओरल चैकअप करवाना चाहिए, ताकि बीमारी घर करने से पहले ही हम उसका उपचार कर सकें। 
 
डॉ. दिल्लीवाल के अनुसार, 'मोबाइल डेंटल क्लीनिक' में अब मेरा बेटा डॉक्टर सूर्यांश और बहू डॉक्टर कृति दिल्लीवाल भी सहयोग कर रही हैं। उनके अलावा जिनी जॉन और अन्य डॉक्टर दोस्तों का भी सहयोग मिलता है। इस चैरिटी से मुझे दिली तौर पर शांति मिलती है, क्योंकि प्रदेश में कई मरीज ऐसे भी हैं, जो डॉक्टर तक नहीं पहुंच पाते और उनकी इतनी भी हैसियत नहीं रहती है कि वे डॉक्टरों का परामर्श शुल्क तक दे सकें।

डेंटल चैकअप से 3 लाख से ज्यादा लोगों को फायदा हुआ है और उनकी जिंदगी बच गई। यह हमारे लिए बहुत बड़ी सफलता है। मेरा मोबाइल मिशन मेरे जाने के बाद भी आम लोगों के लिए वैसी ही सेवाएं देगा, जैसी अभी दी जा रही हैं। हां, इसमें नया यह है कि मैं अपने पिता स्व. रामचन्द्रजी दिल्लीवाल के नाम से एक चेरिटेबल ट्रस्ट शुरु करने जा रहा हूं। 
 
बाजार में प्रचलित दंत मंजनों के बारे में डॉ. दिल्लीवाल ने कहा कि तम्बाकू ओरिएंटेड मंजन दांतों को नुकसान पहुंचाते हैं। लाल-काले मंजनों से दांतों का एनिमल निकल जाता है और ये नई तकलीफ शुरू कर देते हैं। मेरा सुझाव है कि डेंटल हेल्थ एज्युकेशन को शिक्षा का हिस्सा बनाया जाना चाहिए, क्योंकि आपके चेहरे की सुंदरता में दांतों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि देश में अब अत्याधुनिक मशीनें आ गई हैं और कई बार तो विदेशों से मरीज आते हैं, क्योंकि यहां कम खर्च में बेहतर उपचार की सुविधा मिल जाती है। 
 
उन्होंने डॉक्टरों के लिए संदेश दिया है कि आप जरूर पैसा कमाएं, लेकिन अपने डॉक्टर धर्म को कभी नहीं भूलें। चैरिटी करें क्योंकि इससे जो सुख प्राप्त होता है, वह सुख पैसे से कभी नहीं मिलता। डॉ. दिल्लीवाल ने बताया कि मेरे जीवन के करीब 40 साल इंदौर के डेंटल कॉलेज में गुजर गए। मैं वहीं पर पढ़ा और प्रोफेसर बना। हजारों डेंटिस्ट इस कॉलेज से निकले, जो आज देश-विदेश में नाम कमा रहे हैं। मेरे कई शिष्य अमेरिका और कनाडा में हैं। जब भी मैं वहां जाता हूं वे बहुत आदर और सम्मान देते हैं। कनाडा में डॉ. टैरी पमनेचा, डॉ. चड्‍डा, डॉ. भल्ला, यूएस में डॉ. अरुण गुप्ता आदि छात्रों की अच्छी प्रेक्टिस है लेकिन वे इसके साथ ही चैरिटी भी करते हैं। न केवल चैरिटी करते हैं बल्कि होनहार भारतीय गरीब बच्चों की शिक्षा में भी योगदान देते हैं। इन सभी की देशभक्ति भावना का मैं कायल हूं। 
 
डॉ. सुरेन्द्र दिल्लीवाल को अमेरिका की पैलीफीचर सोसायटी द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। यही नहीं, जब वे डेंटल कॉलेज में थे, तब उन्हें स्वतंत्रता दिवस की वर्षगांठ पर नेहरू स्टेडियम में कलेक्टर द्वारा सम्मानित किए गए हैं। उनका कहना है कि मुख कैंसर की बीमारी सबसे ज्यादा उन लोगों में होती है, जो तंबाकू, बीड़ी, सिगरेट और पान मसालों का सेवन करते हैं। ऐसे जो मरीज हम तक एप्रोच नहीं कर पाते, हमारी मोबाइल क्लीनिक तक पहुंचती है और हम महीने में करीब 1 हजार से ज्यादा लोगों का उपचार बिना फीस के करते हैं। उज्जैन सिंहस्थ में भी मैंने और हमारी तीन डॉक्टरों की टीम ने करीब 7 हजार से ज्यादा मरीजों का चैकअप किया था, जो प्री कैंसर से ग्रसित थे।
 
यह पूछे जाने पर कि आप 70 साल को टच करने जा रहे हैं, इस फिटनेस का क्या राज है? उन्होंने कहा कि मैं नियमित तैराकी करता हूं, जिम जाता हूं और महीने-पन्द्रह दिन में एक बार ट्रेकिंग भी करता हूं। जब तक डॉक्टर खुद फिट नहीं रहेगा, वो दूसरों का इलाज कैसे करेगा। मैं नए डॉक्टर और सभी को कहना चाहता हूं कि वे 24 घंटे में सिर्फ एक घंटे अपने शरीर को दें। डॉक्टरों को तो अपनी फिटनेस का जरुरत से ज्यादा ख्‍याल रखना चाहिए क्योंकि उनकी जिम्मेदारी तो कई लोगों की लाइफ बचाने के लिए होती है। मैं खुद कॉलेज के दिनों में तैराकी के 5 नेशनल खेला, राज्य स्तर तक हॉकी और फुटबॉल में हिस्सा लिया। फिटनेस के कारण ही मैं आज उसी स्फूर्ति से काम करता हूं, जितना काम 25 साल पहले किया करता था। 
 
उन्होंने यह भी बताया कि हाल ही में मेरे पास बड़वानी के पास से किसी गांव से फोन आया कि यहां एक व्यक्ति का मुंह चार घंटे से खुला है, आप उपचार कर देंगे। मैंने उन्हें पलासिया पर अपने क्लीनिक बुलाया, जब वे पहुंचे, तब मैं जिम जा रहा था, लेकिन जिम से जरूरी था पेशेंट। उसके जबड़े की हड्‍डी फंस गई थी, मैंने तुरंत उसका उपचार करके उसे स्वस्थ किया, इसके बाद जिम गया। इस तरह के मरीजों को आराम देकर जो खुशी मिलती है, वह बयां करने के बजाए महसूस की जा सकती है। 
 
एक और मरीज आया था, दाढ़ के यहां रूट केनाल के लिए। जब मैं उपचार कर रहा था, तब उसके दूसरे हिस्से में मुझे छाला दिखाई दिया। पूछने पर उसने बताया कि यह चार-पांच महीनों से है, लेकिन आप उसे छोड़ दीजिए और रूट केनाल का काम कीजिए। मैं एक डॉक्टर हूं, भला कैसे छोड़ता। मैंने उसकी बायोस्पी की तो पता चला कि यह तो कैंसर के लक्षण हैं। चूंकि उपचार में डेढ़ लाख का खर्च आ रहा था, लिहाजा मैंने उसे गुजरात भेजा, जहां उसका उपचार 30-40 हजार में हो गया। ऐसे मरीजों से जो दुआ मिलती है, उसे व्यक्त नहीं किया जा सकता। लोगों से प्यार की जो दौलत मुझे मिलती है, यही मेरा सबसे बड़ा सेटिसफेक्शन है। 
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