साबूदाना मांसाहारी है? जानिए सच...

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यूं तो साबूदाना या इसके व्यंजनों का उपयोग खास तौर से व्रत-उपवास में किया जाता है, लेकिन साबूदाना बनने की प्रक्रिया जानने के बाद आपके मन में भी यह सवाल जरूर उठेगा, कि क्या साबूदाना सच में फलाहारी है या फिर मांसाहारी? कहीं साबूदाना खाने से व्रत टूट तो नहीं जाता....इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए जरूर पढ़ें यह जानकारी...
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दरअसल सामान्य तौर पर तो साबूदाना पूरी तरह से वानस्पतिक है, क्योंकि यह सागो पाम नामक एक पौधे के तने व जड़ में पाए जाने वाले गूदे से बनाया जाता है। लेकिन निर्माण की प्रक्रिया से गुजरने के बाद यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा, कि साबूदाना मांसाहारी भी हो सकता है। जी हां, आप खुद ही जानिए।
 
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खास तौर से तमिलनाडु में साबूदाना बनाने की कई बड़ी फैक्ट्र‍ियां है, जहां बड़े पैमाने पर सागो पाम की जड़ों को इकट्ठा कर, उसके गूदे से साबूदाना बनाया जाता है। इस प्रक्रिया में गूदे को बड़े-बड़े गड्ढों में महीनों तक सड़ाया जाता है। सबसे खास बात यह है कि ये गड्ढे पूरी तरह से खुले होते हैं, जिसमें ऊपर लगी लाइट्स की वजह से न केवल कई कीड़े-मकोड़े गिरते हैं, बल्कि सड़ें हुए गूदे में भी सफेद रंग के सूक्ष्म जीव पैदा होते हैं।
 
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अब इस गूदे को, बगैर कीड़े-मकोड़े और सूक्ष्म जीवों का लिहाज किए, पैरों से मसला जाता है जिसमें सभी जीव भी पूरी तरह से मिल जाते हैं और मावे की तरह आटा तैयार होता है। अब इसे मशीनों की सहायता से साबूदाने अर्थात छोटे-छोटे दाने तैयार होने की प्रक्रिया से गुजारा जाता है और पॉलिश किया जाता है।
 
इस तरह आपके व्रत और उपवास में फलाहार के रूप में प्रयोग किया जाने वाला साबूदाना, कीट-पतंगों समेत मांसाहारी हो चुका होता है और आप इस बात से पूरी तरह से अंजान होते हैं। तो क्या अब आप कह सकते हैं, कि साबूदाना फलाहारी है?


दरअसल सामान्य तौर पर तो साबूदाना पूरी तरह से वानस्पतिक है, क्योंकि यह सागो पाम नामक एक पौधे के तने व जड़ में पाए जाने वाले गूदे से बनाया जाता है। लेकिन निर्माण की प्रक्रिया से गुजरने के बाद यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा, कि साबूदाना मांसाहारी भी हो सकता है। जी हां, आप खुद ही जानिए।
 
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खास तौर से तमिलनाडु में साबूदाना बनाने की कई बड़ी फैक्ट्र‍ियां है, जहां बड़े पैमाने पर सागो पाम की जड़ों को इकट्ठा कर, उसके गूदे से साबूदाना बनाया जाता है। इस प्रक्रिया में गूदे को बड़े-बड़े गड्ढों में महीनों तक सड़ाया जाता है। सबसे खास बात यह है कि ये गड्ढे पूरी तरह से खुले होते हैं, जिसमें ऊपर लगी लाइट्स की वजह से न केवल कई कीड़े-मकोड़े गिरते हैं, बल्कि सड़ें हुए गूदे में भी सफेद रंग के सूक्ष्म जीव पैदा होते हैं।
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अब इस गूदे को, बगैर कीड़े-मकोड़े और सूक्ष्म जीवों का लिहाज किए, पैरों से मसला जाता है जिसमें सभी जीव भी पूरी तरह से मिल जाते हैं और मावे की तरह आटा तैयार होता है। अब इसे मशीनों की सहायता से साबूदाने अर्थात छोटे-छोटे दाने तैयार होने की प्रक्रिया से गुजारा जाता है और पॉलिश किया जाता है।
 
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