ऑक्सीजन की किल्लत से पूरे देश में लोग असमय मौत मर रहे हैं। ऐसा मंजर पहली बार देखा जा रहा है कि ऑक्सीजन की खपत एकदम से इतनी बढ़ गई कि नहीं मिलने पर जान जा रही है। इससे पहले शायद ही कभी विचार आया होगा कि हॉस्पिटल्स में ऑक्सीजन कैसी होती है?, कैसे इसे स्टोर किया जाता है? आइए जानते हैं यहाँ -
मेडिकल ऑक्सीजन कैसे बनाई जाती है और क्या होती है ?
प्लांट में एयर सेप्रेशन की मदद से हवा को ऑक्सीजन से अलग किया जाता है। ऑक्सीजन बनाने के लिए सबसे पहले हवा को कंप्रेस किया जाता है। इसके बाद फिल्टर कर उसमें मौजूद अन्य गैस और अशुद्धियों को अलग किया जाता है। इसके बाद ऑक्सीजन पूरी तरह से पृथक हो जाती है और वह लिक्विड फॉर्म में तब्दील हो जाती है। आखिरी में ऑक्सीजन को स्टोर कर लिया जाता है। पूरी प्रक्रिया के बाद आखिरी में जो ऑक्सीजन बनती है उसे मेडिकल ऑक्सीजन कहते हैं।
वायु से अन्य गैसों की तकनीक को अलग करने की प्रक्रिया को क्रायोजनिक टेक्निक फॉर सेपरेशन ऑफ एयर कहते हैं। सेप्रेशन के बाद ऑक्सीजन करीब 99 फीसदी तक शुद्ध हो जाती है।
अस्पतालों तक कैसे पहुंचती है ऑक्सीजन ?
क्रायोजेनिक तकनीक से बनकर तैयार होती है ऑक्सीजन। इसके बाद इन्हें क्रायोजेनिक ट्रैंकर की मदद से डिस्ट्रब्यूटर्स तक लिक्विड फॉर्म में पहुंचाया जाता है। हांलाकि कोरोना महामारी के दौर में सूत्रों के मुताबिक क्रायोजेनिक टैंकर भी कम पड़ रहे हैं। जी हां इन दिनों देश में करीब 15 हजार टैंकर ही है। साथ ही जब लिक्विड ऑक्सीजन को गैस में तब्दील कर सिलेंडर में भरा जाता है वह भी कम पड़ रहे हैं।
मेडिकल ऑक्सीजन की जरूरत कब पड़ती है?
जब मरीज को सांस लेने में परेशानी होने लगती है स्थिति हद से ज्यादा क्रिटिकल हो जाती है। ऐसे में मेडिकल ऑक्सीजन लगाया जाता है। यह ऑक्सीजन करीब 99 फीसदी तक शुद्ध होता है।
एक ऑक्सीजन सिलेंडर कितने देर तक चलता है?
हॉस्पिटल में 7 क्यूबिक मीटर वाले ऑक्सीजन सिलेंडर का इस्तेमाल किया जाता है। लगातार ऑक्सीजन देने पर यह करीब 20 घंटे तक चलता है।
इसकी क्षमता करीब 47 लीटर होती है लेकिन इसमें पे्रशर से करीब 6 हजार लीटर ऑक्सीजन भरी जाती है। हॉस्पिटल्स में 7 क्यूबिक मीटर वाले सिलेंडर आमतौर पर इस्तेमाल किए जाते हैं। जिसे खाली होने पर फिर से भरने में 170 से 200 रूपए तक कीमत आती है। वहीं अस्पताल में सिलेंडर की कीमत करीब 350 से 400 रूपए तक आती है।
स्वस्थ्य इंसान कितनी बार सांस लेता है ?
एक स्वस्थ्य इंसान 1 मिनट में 12 से 20 बार सांस लेता है। अगर वह 12 से कम या 20 से ज्यादा बार सांस लेता है तो उसे किसी तरह की परेशानी है। नवजात बच्चे अधिक सांस लेते हैं। धीरे-धीरे सांस लेने का आंकड़ा कम होता जाता है।
1 मिनट में
नवजात - 30-60 बार सांस लेते हैं।
छोटे बच्चे - 22 से 34 बार सांस लेते हैं।
टीएनजर - 12 से 16 बार सांस लेते हैं।
एडल्ट - 12 से 20 बार सांस लेते हैं।
बात पते की
ऑक्सीजन हवा और पानी दोनों में होती है। हवा में 21 फीसदी ऑक्सीजन होती है और 78 फीसदी नाइट्रोजन गैस होती है। वहीं 1 फीसदी अन्य गैस होती है, इसका भी उपयोग किया जाता है। ऑक्सीजन का लेवल पानी में बहुत कम होता है। पानी में ऑक्सीजन के केवल 10 मोलेक्युल्स ही मौजूद होते हैं।
प्रस्तुति :सुरभि भटेवरा