घड़ी के कांटों के साथ बढ़ता डिप्रेशन

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लगातार काम के बढ़े हुए घंटे डिप्रेशन की आशंका को बढ़ा देते हैं। ब्रिटेन में हुए एक अध्ययन के मुताबिक 6 साल तक की अवधि में जो लोग हर दिन 7-8 घंटे काम करते हैं, उनकी तुलना में लगातार हर दिन 11 घंटे काम करने वाले कर्मचारियों को डिप्रेशन में जाने का खतरा 2.5 प्रतिशत तक बढ़ जाता है।

सीधी-सी बात है कि लगातार काम करते रहने के दौरान एक तो आपका रूटीन काम के हिसाब से ढलता है और दूसरा रिक्रिएशन से काम के दबाव को कम करने की व्यवस्था नहीं हो पाती है। इसलिए बचे हुए समय में भी आप लगातार काम को ही जीते और सोचते हैं।

इससे निजात पाने के लिए फिर सिगरेट और अल्कोहल का सहारा लिया जाता है। इससे स्वास्थ्य पर बुरा असर होता है। इसलिए काम के घंटे तार्किक हों, बीच-बीच में ब्रेक लेने की व्यवस्था भी हो और सप्ताह में एक या दो छुट्टी से न सिर्फ काम करने की क्षमता बढ़ती है, बल्कि कर्मचारियों का स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है।
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