सकारात्मक विचारों से सेहत सुधारें

-डॉ. सुधीर खेतावत

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जब भी हम नकारात्मक विचार करते हैं, गुस्से या तनाव में रहते हैं, तो हमारे मस्तिष्क में स्थित न्यूरोकेमिकल्स सही काम नहीं कर पाते। नतीजा, पाचन क्रिया समेत शरीर की अन्य क्रियाएं गड़बड़ा जाती हैं। आंतों में खून की आपूर्ति घट जाती है और एसिड का रिसाव बढ़ जाता है, जिससे एसिडिटी, पेट दर्द, पेट में गैस बनना, अपच, पतले दस्त, कब्ज आदि समस्याएं उठ खड़ी होती हैं। 'आईबीएस' या इरीटेबल बॉवेल सिन्ड्रोम इन्हीं सब समस्याओं का मिला-जुला रूप है। सम्मोहन चिकित्सा अपनाकर व अपने खान-पान और रहन-सहन में परिवर्तन लाकर आप 'आईबीएस' समेत पेट की अन्य बीमारियों से भी बच सकते हैं।

आपने अक्सर देखा होगा कि कुछ लोग एकाएक पेश आने वाली किसी मुसीबत की वजह से या यात्रा आदि के दौरान आने वाली परेशानियों के बारे में सोचकर या फिर किसी जिम्मेदारी से घबराकर नकारात्मक विचारों से घिर जाते हैं। ऐसी स्थिति में उनकी पाचन क्रिया बिगड़ जाती है।

कुछ लोग तो ऐसे भी होते हैं, जो हमेशा ही अपने निराशावादी विचारों के कारण पाचन संबंधी समस्याओं से ग्रस्त रहते हैं। इन समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए वे हमेशा कोई न कोई दवा लेते रहते हैं, पर अपनी बीमारी की जड़ यानी अपने सोच-विचार पर वे जरा-भी ध्यान नहीं देते। नतीजा यह होता है कि उनकी बीमारी और भी गंभीर रूप धारण करती चली जाती है। आपको यह जानकार भले ही हैरत हो, पर यह सच है कि ज्यादा तनाव की स्थिति में व्यक्ति पेट के अल्सर तक से पीड़ित हो सकता है और इस बात को आज मेडिकल साइंस भी मान रही है।

किसी इंसान का जीवन भी उन अनुवांशिक तत्वों से कंट्रोल होता है, जो शरीर की 50 करोड़ खरब कोशिकाओं में स्थित हैं। वास्तव में एक व्यक्ति के जीवन-काल के बारे में कुछ कहने से पहले हमें उन तमाम घटनाओं पर गौर करना चाहिए, जो मनुष्य के शरीर के अंदर घटित होती हैं। उदाहरण के लिए अमाशय के अंदर निर्मित होने वाली उन कोशिकाओं को ले लीजिए, जो कुछ ही दिनों तक जीवित रह पाती हैं। त्वचा-कोशिकाएं (स्किन सेल्स) दो हफ्ते तक जीवित रहती हैं, जबकि लाल रक्त कोशिकाएं शायद दो-तीन महीनों तक जीवित रहती हैं। इसके अलावा हृदय और मस्तिष्क में कुछ ऐसी भी कोशिकाएं मौजूद होती हैं जो मनुष्य में मरते दम तक जीवित रहती हैं। उनके नष्ट होने और फिर से तैयार होने जैसी कोई प्रक्रिया नहीं होती। सबसे हैरत-अंगेज बात तो यह है कि इन तमाम कोशिकाओं के कम-से-कम लेकर लंबे से लंबे समय तक के जीवन-काल को इनमें स्थित डीएनए नामक अनुवांशिक तत्व ही नियंत्रित करता है।

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हर किसी के अंदर निगेटिव विचारों का प्रवाह चलता है, मगर आत्मचिंतन की ओर अपने दिल-दिमाग को मोड़कर आप उससे मुक्त हो सकते हैं। यदि आपको शरीर में कहीं दर्द का एहसास होता है या किसी बात को लेकर आप अपने को डिस्टर्ब पाते हैं, तो फिर उस बात पर गौर करने की बजाए आप अपनी आंखें चंद सेकंड के लिए बंद कर सोचें, कि आप अपने शरीर के अंदर झांक रहे हैं। इससे आपका मस्तिष्क तुरंत शरीर के कुछ खास अंगों की ओर आकर्षित होने लगता है।

ये अंग पेट और दिल भी हो सकते हैं। बस, उस समय आप अपने ध्यान को लगभग आधे मिनट तक वहां रहने दें। अच्छी सोच का प्रवाह बनाने की कोशिश कीजिए, आप देखेंगे कि आपके दर्द आदि का एहसास धीरे-धीरे घटने लगा है। फिर, आप जब आंखें खोलेंगे, तो देखेंगे कि मानसिक परेशानी की स्थिति खत्म हो चुकी है यह सब आत् म- सम्मोहन द्वारा या दूसरे शब्दों में कहे कि सकारात्मक सोच से सहज हो जाता है।

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