छोटी-सी लौंग के बड़े कमाल

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- उषा पाहव ा

लौंग मध्यम आकार का सदाबहार वृक्ष से पाया जाने वाला, सूखा, अनखुला एक ऐसा पुष्प अंकुर होता है जिसके वृक्ष का तना सीधा और पेड़ भी 10-12 मीटर की ऊँचाई तक वाला होता है। इसका उपयोग भारत और चीन में 2000 वर्षों से भी अधिक समय से हो रहा है। लौंग एक ऐसा मसाला है जो दंत क्षय को रोकता है और मुँह की दुर्गंध को दूर भगाता है। इसके अलावा ईरान और चीन में तो ऐसा भी माना जाता था कि लौंग में कामोत्तेजक गुण होते हैं।

ऐतिहासिक रूप से लौंग का पेड़ मोलुक्का द्वीपों का देशी वृक्ष है, जहाँ चीन ने ईसा से लगभग तीन शताब्दी पूर्व इसे खोजा और अलेक्सैन्ड्रिया में इसका आयात तक होने लगा। आज जाजीबार लौंग का सबसे अधिक उत्पादन करने वाला देश है। लौंग में मौजूद तत्वों का विश्लेषण किया जाए तो इसमें कार्बोहाइड्रेट, नमी, प्रोटीन, वाष्पशील तेल, गैर-वाष्पशील ईथर निचोड़ (वसा) और रेशों से बना होता है। इसके अलावा खनिज पदार्थ, हाइड्रोक्लोरिक एसिड में न घुलने वाली राख, कैल्शियम, फास्फोरस, लोहा, सोडियम, पोटेशियम, थायामाइन, राइबोफ्लेविन, नियासिन, विटामिन 'सी' और 'ए' भी लौंग में पाए जाते हैं। इसका ऊष्मीय मान 43 डिग्री है और इससे कई तरह के औषधीय व भौतिक तत्व लिए जा सकते हैं।

लौंग में अनेक औषधीय गुण होते हैं। ये उत्तेजना देते हैं और ऐंठनयुक्त अव्यवस्थाओं, तथा पेट फूलने की स्थिति को कम करते हैं। धीमे परिसंचरण को तेज करती है और हाजमा तथा चयापचय को बढ़ावा देती है। भारतीय औषधीय प्रणाली में लौंग का उपयोग कई स्थितियों में किया जाता है। लौंग को या तो चूर्ण के रूप में लिया जाता है या फिर उसका काढ़ा बनाया जाता है। लौंग के तेल में भी ऐसे अंश होते हैं जो रक्त परिसंचरण को स्थिर करते हैं और शरीर के तापमान को नियंत्रित रखते हैं। लौंग के तेल को बाहरी त्वचा पर लगाने से त्वचा पर उत्तेजक प्रभाव दिखाई देते हैं। त्वचा लाल हो जाती है और उष्मा उत्पन्न होती है। इसके अलावा लौंग एंजाइम के बहाव को बढ़ावा देती है और पाचन क्रिया को भी तेज करती है। यदि भुने हुए लौंग के चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर ले लिया जाए तो उल्टियों पर काबू पाया जा सकता है क्योंकि लौंग के संज्ञाहारी प्रभाव से पेट और हलक सुन्न हो जाते हैं और उल्टियाँ रुक जाती हैं। हैजे के उपचार में भी लौंग बहुत उपयोगी सिद्ध होती है। इसके लिए चार ग्राम लौंग को तीन लीटर पानी में तब तक उबाला जाता है जब तक कि आधा पानी भाप बनकर गायब न हो जाए। इस पानी को पीने से रोग के तीव्र लक्षण तुरंत काबू में आ जाते हैं।

नमक के साथ लौंग चबाने से कफोत्सारण (थूकने) में आसानी होती है, गले का दर्द कम हो जाता है और ग्रसनी की जलन भी बंद हो जाती है। ग्रसनी शोथ के कारण होने वाली खाँसी को दूर करने के लिए जले हुए लौंग को चबाना अच्छा होता है। क्षय रोग, दमा और श्रवसनी शोथ से होने वाली दर्दभरी खाँसियों को कम करने के लिए लहसुन की एक कली को शहद के साथ मिलाएँ और उसमें तीन से पाँच लौंग के तेल की बूँदें डालें। सोने से पहले इसे एक बार लेने से काफी आराम मिलेगा।

लौंग से दमे का बहुत प्रभावी इलाज होता है। छः लौंग की कलियों को 30 मि.ली. पानी के साथ उबालकर काढ़ा बनाकर इसे शहद के साथ दिन में तीन बार लेना चाहिए, इससे कफोत्सारण में आसानी होती है। दाँत के दर्द में भी लौंग उपयोग होती है और इसके एन्टिसेप्टिक गुण दाँतों के संक्रमण को कम करता है। पेशियों की ऐंठन में लौंग के तेल की पुलटिस प्रभावित क्षेत्र पर लगाने से यह ठीक हो जाती है। नमक के क्रिस्टल और लौंग को दूध में मिलाकर तैयार विलेप लगाने से सिरदर्द ठीक हो जाता है। बरौनी के आसपास की जलन को ठीक करने के लिए भी लौंग प्रभावी होती है। पानी में लौंग को घिसकर प्रभावित जगह पर लगाने से सुकून मिलता है।

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