आओ लौट चलें

Webdunia
- नृपेंद्र गुप्ता

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कलयुग में रामराज्य स्थापित करने की कहानी है- आओ लौट चलें। इस कहानी का नायक वैसे तो राजेंद्र है पर कविता, अजय, मनीष ( पुस्तक में मनीश हैं), मंजू और माँ ठकुराइन के किरदार इतने दमदार है कि उपन्यास में कई बार राजेंद्र हाशिए पर चला जाता है।

लेखक तेजपाल चौधरी ने उपन्यास में विधवा विवाह, भ्रष्टाचार, संयुक्त परिवार, अंतरजातीय विवाह के साथ-साथ राजनीति में छात्रों के दुरुपयोग जैसे मुद्दों को जमकर उछाला गया है। कहानी जीवंत है और लेखक ने पाठकों को किताब से जोड़ने के लिए इसमें पर्याप्त मसाला भी डाला है।

आओ लौट चलें का हर किरदार अपने आप में दमदार है। राजेंद्र, कविता, अजय, मनीश, मंजू, माँ ठकुराइन के साथ ही कृष्णा, सोनू, कलेक्टर चंद्रप्रकाश, ताऊजी आदि भी बहुत प्रभावित करते हैं। कहानी में सभी की भूमिका सशक्त है। भाषा सरल है और पाठक पहली लाइन से ही कहानी से जुड़ाव महसूस करता है। कहानी की गति उसे पुस्तक को पूरा पढ़ने पर मजबूर करती है।
  कलयुग में रामराज्य स्थापित करने की कहानी है- आओ लौट चलें। इस कहानी का नायक वैसे तो राजेंद्र है पर कविता, अजय, मनीष ( पुस्तक में मनीश हैं), मंजू और माँ ठकुराइन के किरदार इतने दमदार है कि उपन्यास में कई बार राजेंद्र हाशिए पर चला जाता है।      


कहानी बेरोजगार राजेंद्रसिंह से शुरू होकर अजय के हरे-भरे परिवार पर खत्म होती है। इसमें अंतरजातीय विवाह का समर्थन है तो समाज, गौत्र आदि बातों के महत्व को भी स्वीकार किया गया है। लेखक दो प्रेमी युगलों को मिलाता भी है और उसके पास एक परिवार के दो बच्चों के आपस में विवाह कर लेने को गलत ठहराने का उचित कारण भी है। वह कहानी में भ्रष्टाचार का विरोध करता है तो समाजसेवा के बदले लाभ उठाने की भावना के भी खिलाफ है।

राजेंद्र को रिपुदमनसिंह कॉलेज में नौकरी मिल जाती है। और वह जल्द ही छात्रों में लोकप्रिय हो जाता है। उसकी अभिव्यक्ति से प्रभावित होकर पप्पूसिंह नामक दबंग नेता उसे भाषण देने आमंत्रित करता है पर कॉलेज को नेतागिरी से दूर रखने की मंशा से वह उसे मना कर देता है। बाद में वे उसके गुट के छात्रों द्वारा अपहृत दो छात्रों को छुड़ाकर कॉलेज चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका भी अदा करते है। बाद में इसी बात पर उस पर जानलेवा हमला होता है पर उसकी जान बच जाती है। वह गरीब छात्रों के लिए नई योजना शुरू कर उनके कॅरियर को भी सवाँरता है।

रिपुदमनसिंह के पुत्र रामकृपालसिंह दो बार इलाके के सांसद भी रहे। एक सड़क दुघर्टना में उनकी मौत हो जाती है। रामकृपालसिंह के दो बेटे हैं बड़ा अक्षय जो शहर में बड़ा वकील है और छोटा अजय जो गाँव में बाप-दादा के द्वारा संचित की गई पूँजी की देखभाल करता है। उसे समाजसेवा का बड़ा चस्का है। वह कॉलेज की संचालन सम‍िति का अध्यक्ष भी है।

अजय कहानी का सेंटर पॉइंट है जब भी कहानी अटकती है अजय ही कहानी को आगे बढ़ाता है। वह राजेंद्र को कविता से और मनीश को मंजू से मिलाने में मदद करता है। सोनू को पुत्रवत रखता है और उसे डॉक्टर बनाकर उसके करियर को सवाँरता है। ताऊजी को स्वदेश आने के लिए प्रेरित कर वह अपने संपूर्ण परिवार को सफलतापूर्वक एकजूट करता है।

प्रो. राजेंद्रसिंह को कॉलेज में ही अजय की बहन कव‍िता से प्यार हो जाता है। कविता एक विधवा है। शुरू में अजय की माँ, माँ ठकुराइन इस अंतरजातीय विवाह का विरोध करती है मगर अजय के मनाने पर मान जाती है। बस यहीं से कहानी में लयात्मकता के साथ सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ जंग का ऐलान हो जाता है। कविता मास्टर दीनानाथ की सलाह पर समाजसेवा में डूब जाती हैं और प्रौढ़ शिक्षा, वृद्धाश्रम आदि कार्यों को सफलतापूर्वक अंजाम देती है। क्षेत्र में उसकी लोकप्रियता बढ़ती चली जाती है और वह कव‍िता से कव‍िता दीदी हो जाती है। वह विधायक पप्पूसिंह को हराकर विधायक भी बनती है और उसकी मौत के बाद अपने पति राजेंद्र के साथ जाकर मानवता का नया इतिहास भी लिखती है।

राजेंद्रसिंह कॉलेज में राजनीति के खिलाफ जंग छेड़कर क्षेत्र के दबंग नेता पप्पूसिंह से दुश्मनी मोल ले लेता है। कॉलेज चुनाव में हिंसा भी होती है मगर प्रोफेसर के प्रयासों से गुंडा तत्वों की हार होती है और पप्पूसिंह की कॉलेज में अपना दबदबा स्थापित करने की तमन्ना अधूरी रह जाती है। इस बात से वह आहत होता है और राजेंद्रसिंह पर हमला करा देता है। राजेंद्रसिंह की जान बच जाती है मगर मामला बहुत उछलता है और हमलावर की भी बाद में हत्या हो जाती है। बाद में पप्पूसिंह विधानसभा चुनाव जीतकर विधायक बन जाता है। मगर राजेंद्रसिंह का मामला उसे बहुत परेशान करता है। पत्रकार मनीश के आगे वह हार मान जाता है। अगले चुनाव में कव‍िता से हारकर वह आत्महत्या कर लेता है।

मनीश और मंजू दोनों ही ईमानदार पत्रकार हैं। दोनों एक स्टोरी के माध्यम से संपर्क में आते हैं और एक-दूसरे के हो जाते हैं। वे अजयसिंह की मदद से खुद तो प्रेम विवाह करते है। मगर रामकिशन और कृष्णा की शादी का विरोध करते हैं। रामकिशन और कृष्णा रिश्ते में भाई-बहन लगते हैं। बाद में वे कृष्णा को गोद लेकर उसका कॅरियर भी सवाँरते हैं। वे लोकमंगल नाम से एक चैनल भी शुरू करते हैं, जिसका उद्देश्य पैसा कमाना न होकर समाजसेवा है।

नकारात्मक बातों पर सकारात्मकता का हावी होना कहानी का मजबूत पक्ष है। लेखक ने सामाजिक कुरीतियों पर जमकर प्रहार करते हुए भी उपन्यास को बोझिलता से दूर रखकर रोचकता को बरकरार रखा है। हर पात्र आदर्श की बाते करता प्रतीत होता है अत: कहीं-कहीं फिल्मों वाली काल्पनिकता की झलक भी मिलती है। विषय अच्छा और लिक से हटकर है। तर्को के प्रयोग से अपनी बात को वजनदार बनाने में लेखक सफल रहा है। समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ आंदोलन की अपील करता एक गतिशील उपन्यास है-आओ लौट चले।

पुस्तक : आओ लौट चले
लेखक : तेजपाल चौधरी
मूल्य : दो सौ पचास रुपए
प्रकाशक : पंचशील प्रकाशन, फिल्म कॉलोनी, चौड़ा रास्ता जयपुर-302003
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