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बोधगया दी लैंड ऑफ एन्लाइट्नमेंट

वर्तिका नंदा
किताबों की भीड़ में सिर्फ वही किताबें टिकने की आश्वस्ति दे सकती हैं जो सच के करीब हों और सटीक भी। उदय सहाय की संपादित किताब- बोधगया दी लैंड ऑफ एन्लाइट्नमेंट- इस आश्वस्ति को देती हुई दिखती है। बौद्ध दर्शन पर किताबों के असीमित संसार के बीच यह किताब एक मधुर दस्‍तक की तरह आई है। वैसे तो यह एक कॉफी टेबल बुक है लेकिन अपने कथ्य की मजबूती की वजह से यह खुद को बौद्ध धर्म के जीवंत दस्‍तावेज के तौर पर स्थापित करने का आभास देती है। 
 
इतिहास को सहेजती यह किताब बारह हिस्‍सों में बंटी है और महात्‍मा बुद्ध के जीवन और बुद्ध धर्म की कहानी को दृश्‍यों के साथ विस्‍तार देती हुई विकसित होती चलती है। 'बोधगया टेम्पल मैनेजमेंट कमिटी' की प्रायोजित इस कॉफ़ी टेबल बुक की भूमिका बौद्ध धर्म के आध्यात्मिक और अंतरराष्ट्रीय गुरु दलाई लामा ने लिखी है और इसके छायाकार और पटकथा संपादक उदय सहाय हैं। 
 
किताब पारंपरिक लेखन से कुछ परे हटती हुई बुद्ध के जीवन के आरंभिक 29 वर्ष को पहले अध्याय में संक्षेप में समेटती है लेकिन उसके बाद किताब की गति और दिशा बदलती दिखती है। ऐतिहासिकता और मौजूदा दौर के अनुयायी की जिज्ञासा- दोनों को ही दृष्टि में रखते हुए इस किताब को एक बड़े कैनवास पर उतारा गया है। 
 
किताब के अध्याय व्यापक शोध के बाद निर्धारित किए दिखते हैं। डुंगेश्वरी स्थित महाकाल गुफा, ब्रह्मयोनि पहाड़ पर बुद्ध का 'फायर सरमन' और गुरुपद पहाड़ पर भविष्य में अवतरित होने वाली बुद्ध की कहानी पाठक में इतिहास को महसूस करने की क्षमता को विकसित करती है। इसका एक अध्याय 'असाधारण मंदिर का एक साधारण दिन' खासा दिलचस्प है। शांति के दूत के तौर पर श्रीलंका, थाईलैंड और बर्मा के प्रयासों को भी प्रमुखता दी गई है।
अंतिम अध्याय 'बोधगया टेम्पल मैनेजमेंट कमिटी' के 2007 के बाद के कार्यक्रमों को तफसील से जोड़ा गया है। इसके सूत्रधार 'कमिटी' के सचिव नंगजे दोरजी और युवा चेयरमैन कुमार रवि हैं। सहाय का मानना है कि शोध और खोज के साथ सहेजी गई यह किताब बौद्ध धर्म के अनुयायियों की पसंद बनेगी। 
 
किताब का कवर महाबो‍धि में पूजा के अध्‍यात्‍मिक दृश्‍य को प्रस्‍तुत करता है। बोधगया स्थित महाबोधि मंदिर परिसर की मूर्तियां, बोधिवृक्ष, परिसर में मौजूद छह पवित्र स्थल, मंदिर की दीवारों पर अंकित बुद्ध के पूर्व जन्म को दिखाती जातक कथाओं और उनके जीवन की कहानी कहतीं मूर्तियों को शामिल कर किताब ने पाठक को एक भरी-पूरी तस्वीर दी है। इस किताब में तस्‍वीरों को नजाकत से रखा गया है। हर तस्‍वीर बोलती हुई दिखती है और अपनी जगह पर सटीक दिखती है। कुछ तस्‍वीरें ऐसी हैं जो अध्‍यात्‍म से जुड़े लोगों की कल्‍पना का हिस्‍सा रही होंगी।
 
छायाकारी में उदय सहाय का मुख्य सहयोग दिल्ली के छायाकार हरण कुमार और गया के मनीष भंडारी ने भी दिया है। लंदन लाइब्रेरी, पेरिस म्यूजियम और नालंदा स्थित हुनसंग मेमोरियल से कुछ संग्रहीत चित्र भी ससम्मान इस किताब में शामिल किए गए हैं। हालांकि किताब का मुख्य फोकस बोधगया और महाबोधि मंदिर है लेकिन संपादक ने इस किताब को विस्तार और व्यापकता देने के लिए इसमें बिहार के राजगीर, नालंदा, वैशाली, केसरिआ के साथ ही उत्तर प्रदेश के बौद्ध तीर्थस्थल सारनाथ और कुशीनगर और बुद्ध के जन्म स्थल लुम्बिनी को भी शामिल किया है। 
 
किताब में तस्वीरें और उनका विश्लेषण एक साथ चलता है। हर तस्वीर के साथ सटीक कैप्शन है। तस्वीरों का चयन समझदारी से किया गया है। गया के बौद्ध कार्यक्रमों में 'कालचक्र पूजा 2017' चित्रों को पिरोकर गया को अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक की जिज्ञासाओं के साथ जोड़ दिया गया है। एक तस्वीर में कालचक्र के दौरान चाय ले जाते कई भौद्ध भिक्षुओं की गति को कैमरे ने जिस उत्साह से उतारा है, उसकी ताजगी और चपलता देखते ही बनती है। 
 
किताब के लिए कागज का चयन बेहतरीन है और यह प्रकाशन की कमियों से तकरीबन अछूती है। किताब का कथानक मजबूत है लेकिन कई जगहों पर शब्‍दों का अतिरेक दिखता है। लिखने के शिल्‍प को साधने में सफल होने के बावजूद यह किताब में यह कमी अखरती है। इससे बचा जा सकता था। लेकिन इसके बावजूद इससे किताब की पठनीयता या संग्रहीयता की इच्छा कम नहीं होती।
 
हरमन हैस की बेहद प्रचलित किताब सिद्धार्थ में मुख्‍य चरित्र जब यह कहता है कि उसे ज्ञान की प्राप्ति हो गई है और आज वह उसी नदी, उसी आकाश, उसी चांद और उसी सूरज को एक नई दृष्टि से देख रहा है तो पाठक को स्‍वभाविक तौर पर आध्‍यात्मिक छुअन का एहसास होता है। यह किताब उसी क्षमता को विकसित करती हुई दिखाई देती है।
 
किताब का नाम : बोधगया दी लैंड ऑफ एन्लाइट्नमेंट 
संपादक : उदय सहाय
प्रकाशक : सौव पब्लिकेशन्स
साल : 2017
कीमत : 3000 रुपए

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