जय वर्मा की कहानियां: ‘सात कदम’ में सात समन्दर पार करती कहानियां

सारिका गुप्ता
कहानियां ज़िन्दगी को थोड़ा और बड़ा कर देती हैं। कहानियों का लेखक अपने गढ़े हुए पात्रों के हिस्से की ज़िन्दगी भी जीता है, उनके सुख, उनकी टूटन, उनकी पीड़ा को चुपचाप महसूसता है, और उन अनुभूतियों को एक आकार देता है। यूं हम सभी के इर्द गिर्द कितनी ही कहानियां बिखरी पड़ी होती हैं, कितनी ही कहानियां समानांतर चलती रहती हैं, लेकिन हम उन्हें रोज़मर्रा की घटनाओं की तरह देखकर आगे बढ़ जाते हैं।

यह लेखक का दृष्टिकोण होता है जो उन सामान्य घटनाओं को शब्दों में ढालकर उन्हें हमारी स्मृति में सहेजने योग्य बना देता है। सामान्य घटनाएं जब कहानी की शक्ल में हमारे सामने आती हैं तो लम्बे समय तक हमारी स्मृति में बनी रहती हैं। उनका ठहराव कहानीकार के कौशल पर निर्भर करता है। कहानी के पात्र हमें अपने आसपास के लोगों में या कभी कभी स्वयं में भी दिखाई देने लगते हैं।

जैसा कि ‘सात कदम’ की लेखिका जय वर्मा लिखतीं हैं, 

हर एहसास, हर लम्हें को शब्दों में उतारा नहीं जा सकता, लेकिन कुछ अनुभूतियां दिलों-दिमाग में बसी रह जाती हैं... कुछ पात्र तो आपके साथ चलने फिरने लगते हैं। ऐसा लगता है कि यदि शब्दों में न ढाले गए तो वे पात्र स्वयं अपनी कहानी कहने लगेंगे

सचमुच, ‘सात कदम’ संकलन की कहानियां पढ़ते हुए ऐसा लगता है कि वे महज़ कहानियां न होकर लेखिका के जिए हुए समय का एक लिखित दस्तावेज़ है। इन कहानियों को जय वर्मा ने बहुत क़रीब से देखा है, महसूस किया है। शायद इसीलिए विभिन्न परिस्थतियों में कहानी के पात्रों की मनोदशा हमें जीवंत रूप में न सिर्फ महसूस होती है, बल्कि किसी चलचित्र की तरह आंखों के सामने दिखाई भी देती हैं।

संकलन की पहली कहानी ‘कोई और सवाल’ की नायिका एक खूबसूरत और मासूम सी अंग्रेज़ लड़की डोरीन है जो प्रेम विवाह करती है, लेकिन अपने पूरे समर्पण के बावजूद, उसे न प्रेम मिलता है न सम्मान। अंत में वह एक कठोर निर्णय लेती है जो एक मां या पत्नी का निर्णय न होकर एक स्त्री का निर्णय होता है। हालांकि उस निर्णय तक पहुंचने में उसे 22 साल लग जाते हैं, लेकिन फिर भी वह अपना अस्तित्व महसूस करती है और घर छोड़ देती है।

घर छोड़ते वक्त उसके मन में एक अजीब सा डर भी होता है, लेकिन ‘डार्क रूम’ (आर.के. नारायण) की भारतीय नायिका सावित्री की तरह वह घर और बच्चों की चिंता में नहीं रहती है, न ही वापस लौटती है; वह बस नये जीवन की तलाश में आगे बढ़ती जाती हैं।

डोरिन की कहानी हमें किसी आम भारतीय लड़की की कहानी सी लगती है। बाहर से भले ही हम सब इतने अलग दिखाई देते हैं, लेकिन भीतर से हमारी संवेदनाएं धरती ले किसी छोर पर जाकर एक हो जाती हैं। प्रेम हर देश में प्रेम ही है, और दुःख दुःख ही है। इसीलिए, विदेशी पृष्ठभूमि में लिखी गई कहानियों से भी हम उतना ही जुड़ाव महसूस करते हैं।

लेखिका मूलरूप से मेरठ (उप्र) से हैं और पिछले ४५ वर्षों से इंग्लैण्ड में निवासरत हैं। अपनी धरती से दूर रहने की टीस उनके लेखन में खुलकर नज़र आती है. मेरे विचार से यह एक व्यक्तिगत अनुभूति के साथ ही विदेशों में रह रहे भारतीयों की सामूहिक व्याकुलता की अभिव्यक्ति है।

कहानी ‘गूंज’ इसी टीस को अभिव्यक्त करती एक सुंदर कहानी है जिसमें अमिता ३० साल यूके में रहने के बाद भी एक खालीपन महसूस करती है। उस खालीपन में उसे स्मृतियों की एक गूंज सुनाई देती है जो उसे बेचैन कर देती है। लेकिन वह गूंज किस चीज़ की थी वह तय नहीं कर पाती है और अंततः जब वह भारत लौटती है तो उसे पता चलता है कि वह गूंज दरअसल उस सारंगी का संगीत था जो उसकी गली से गुजरने वाला एक बूढ़ा फ़कीर बजाया करता था। सारंगी को सुनकर वह परम तृप्ति अनुभव करती है।

भारतीय ग्रामीण परिवेश में रहने वाले बच्चों के लिए कुल्फी वाले, गुब्बारे वाले, चना-चाट वाले की टेर या घंटी की आवाज़ या किसी फ़कीर के चिमटे का स्वर उनकी स्मृतियों में स्थायी रूप से दर्ज हो जाता है। लेखिका ने उन छोटी-छोटी स्मृतियों को भी प्रेम से सहेज कर रखा है और उन्हें अपनी कहानी में बखूबी व्यक्त भी किया है।

एक अन्य कहानी ‘गुलमोहर’ में जय वर्मा ने उन भारतीय माता-पिता के एकाकीपन का मर्मस्पर्शी चित्र खींचा है, जिनके बच्चे विदेशों में बस जाते हैं और बरसों-बरस लौटकर नहीं आते। कहानी का अंत आंखें नम कर देता है और पाठकों के मन में एक प्रश्न छोड़ देता है कि क्या बच्चों की ख़ुशी के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देना उचित है?

इसी तरह, ‘सात कदम’ भी एक बेहद मर्मस्पर्शी कहानी रही, जिसे पढ़ते समय ह्रदय में एक टीस सी उठती है। जीवन के स्वर्णिम क्षणों में जीवन साथी के अचानक गुज़र जाने की टीस और हृदय में दुःख का तूफान लिए स्वयं को शांत दिखाती एक साहसी स्त्री; दोनों ही इस कहानी में जीवंत हो उठे हैं।

हालांकि संकलन की ज़्यादातर कहानियां स्त्री पात्रों को केंद्र में रखकर लिखी गई हैं, फिर भी यह कहना ग़लत होगा कि जय वर्मा का लेखन स्त्री केन्द्रित है। पुस्तक में संकलित सात कहानियों में लेखिका ने सात अलग-अलग विषयों को छुआ है, जिसमें पत्नी की मृत्यु के बाद विदेश में बेटे-बहु के साथ एकाकी जीवन व्यतीत करते हुए एक बुज़ुर्ग की व्यथा भी शामिल है।

विस्तार की गुंजाईश होते हुए भी सभी कहानियां संक्षेप में लिखी गई हैं, लेकिन इससे कहानियों की रोचकता या संप्रेषणता में कोई कमी नहीं हुई है। संक्षिप्त शैली के बावजूद इन कहानियों में इंग्लैण्ड के विभिन्न स्थानों का पूरा विवरण मिलता है, जिससे कहानियों में दृश्यता पैदा होती है और वे पाठक के स्मृति पटल पर लम्बे समय तक ठहरती हैं।

‘गोल्फ’ कहानी में मूल कथानक के अलावा गोल्फ खेल से सम्बन्धित कई सारी सूक्ष्म और महत्वपूर्ण जानकारी भी पढ़ने को मिलती है, जो एक अच्छा गोल्फर या एक सच्चा गोल्फ प्रेमी ही दे सकता है। यह सूक्ष्म विवरण लेखिका के एक और उजले पक्ष की ओर संकेत भी करता है।

पुस्तक में कहीं कोई अधूरापन सा लगता है तो वह है कहानियों के ‘शीर्षक’। हालांकि ‘शीर्षक चयन’ पूरी तरह से लेखक का व्यक्तिगत निर्णय होता है। लेकिन फिर भी एक उचित शीर्षक कथानक को पूर्णता प्रदान करता है। शीर्षक चयन की समस्या कई लेखकों के साथ होती है। कई लेखक पूरी कहानी लिख लेते हैं, लेकिन उचित शीर्षक तय नहीं कर पाते हैं, और यह निर्णय वे अपने मित्रों या करीबी लोगों पर छोड़ देते हैं। इस असमंजस के बावजूद, कहानी का लिखा जाना महत्वपूर्ण है और उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है उसे पाठकों तक पहुंचाना, जिसमें जय पूरी तरह से सफल हुईं हैं।

प्रवासी भारतीय के रूप में जय वर्मा की साहित्यिक यात्रा अनेक उपलब्धियों से सुसज्जित और गौरवपूर्ण रही है। ‘सात कदम’ कहानी संग्रह का प्रकाशन उनके सृजन के आकाश में एक नए और चमकदार सितारे के आगमन की तरह है।

(समीक्षक सारिका गुप्‍ता कवियत्री और कहानीकार हैं।)

पुस्तक: सात कदम
लेखिका: जय वर्मा
भाषा: हिंदी
प्रकाशक: अयन प्रकाशन, नई दिल्ली
मूल्य: २५० रुपए 

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