काव्य कृति 'वह बाला'

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
लंबी कविता का संग्रह 'वह बाला' के संबंध में लेखक का मानना है कि यह काव्य प्रेरणा हरिवंशराय बच्चन की 'मधुशाला' से है। जो पाठक श्रृंगार रस में रुचि रखते हैं, उन्हें कृति जरूर पसंद आएगी। हालांकि यह भी एक सुखद आश्चर्य है कि घोड़े की लगाम थामने वाले हाथों ने कलम थामी और एक लंबी कविता रच डाली। 
पेशे से रुस्तमजी सशस्त्र पुलिस प्रशिक्षण महाविद्यालय, इंदौर में वेटरनिटी ऑफिसर रहे और कुशल घुड़सवार व प्रशिक्षक डॉ. किशोर विनायकराव काले की इस काव्य कृति में न तो तुकबंदी है और न ही मुक्त छंद का कोई नियम। दरअसल, यह काव्य कृति उनके हृदय से निकला स्वस्फूर्त प्रेम है।
 
माइक्रोबायोलॉजी में एमवीएससी काले ने इस काव्य कृति में अपनी स्वप्न में आई एक बाला के सौंदर्य वर्णन के साथ ही उसके व्यवहार का कुशल वर्णन किया है। साथ ही उस बाला से उनके संबंध को भी उकेरा है। 
 
डॉ. काले ने यह काव्य कृति अपने स्व. ‍माता-पिता को समर्पित की है। 'वह बाला' पर नरहरि पटेल ने बहुत ही सुंदर टिप्पणी लिखी है। उन्होंने लिखा है कि 'वह बाला' ऐसी अशरीरी काव्य बाला है, जो स्वप्निल पात्र रूप धारण कर मानवीय मोह, उन्माद, भ्रम, आशा, विश्वास के विविध बिम्ब उकेरती है।
 
142 पृष्ठों में बंद इस काव्य कृति के पन्नों पर सुंदर सजावट की गई है तो कहीं उस बाला का रेखांकन भी किया गया है। काव्य कृति के मुख्‍य पृष्ठ पर जहां उस स्वप्न सुंदरी का चित्र है तो अंतिम पृष्ठ पर लेखक का संपूर्ण परिचय छपा है। वह बाला पढ़ने वक्त निश्चित ही 'मधुशाला' की याद आएगी।
 
पुस्तक : वह बाला
लेखक : डॉ. किशोर विनायकराव काले
मूल्य : 100 रुपए
 
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