पुस्‍तक समीक्षा: सत्‍ता के दो दशक, किताब से जानिए, मनमोहन और मोदी सरकारों में बेहतर कौन

Webdunia
गुरुवार, 28 मार्च 2024 (13:23 IST)
पंकज शुक्‍ला
यह चुनाव का मौसम है। देश की नई सरकार को चुनने का मौका है। समझदार लोग मानते हैं कि अंतिम चयन के पहले प्रतिस्‍पर्धियों में आकलन, तुलना, समीक्षा होना चाहिए ताकि बेहतर को चुना जा सके। सरकार को चुनने के लिए जिन पैमानों का उपयोग होता है उनमें पार्टी की रीति-नीतियों के अलावा घोषणाएं, वादें, किए गए कार्यों की तुलना और विफलता प्रमुख है। एक चुनी गई सरकार के काम का दायरा अधिकतम 5 वर्ष का होता है, लेकिन उसकी सफलता और विफलता केवल पांच सालों में नहीं सिमटी रहती हैं। यह तो अतीत से लेकर आगत की विराट संभावना तक विस्‍तारित होती है। यह विस्‍तार बहुत व्‍यापक है। शायद आम मतदाता के लिए इस समूचे विस्‍तार को जान पाना संभव भी नहीं है यदि कुछ विश्‍लेषण, कुछ अध्‍ययन, कुछ किताबें सहायक न हो।

इनदिनों में एक ऐसी ही किताब से गुजरा जो आम पाठक को सत्‍ता के दो दशक से रूबरू करवाती है। पुस्‍तक का शीर्षक भी यही है, ‘सत्‍ता के दो दशक, यूपीए और एनडीए सरकारों का सफरनामा’। पुस्‍तक में वर्ष 2004 में डॉ. मनमोहन सिंह की अगुवाई में बनी यूपीए सरकार के दस वर्षों तथा 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बनी एनडीए की सरकार के दस वर्षों की यात्रा का लेखाजोखा है। दो अलग-अलग विचारधारा की सरकारों के गठन के नैपथ्‍य को रखने के साथ लेखक सुदर्शन इन सरकारों के दस-दस वर्षों के कामकाज की तुलना उन्‍हीं के वादों, उनके कामकाज तथा चुनौतियों के आइने में करते हैं। इस पुस्‍तक में यूपीए और एनडीए गठबंधन के आकार लेने की कहानी दर्ज है तो सरकारों की सफलता और विफलता के सूचक साबित होने वाले तथ्‍य भी संग्रहित है।

आंकड़ों की बाजीगरी और फेक तथ्‍यों के वर्तमान दौर में लेखक सुदर्शन व्‍यास ने अपनी पुस्तक को विश्‍वसनीय बनाने के लिए विभिन्न मीडिया संस्थानों की रिपोर्ट्स का ही सहारा लिया है। इस तरह दोनों सरकारों के कामकाज को जानने, समझने के लिए यह पुस्‍तक हमारी सहायता करती है।

इस पुस्‍तक के लेखक सुदर्शन व्‍यास मध्‍य प्रदेश के युवा पत्रकार हैं। पत्रकारिता उनका कर्म है और कवित्‍त उनका प्रेम। समाज सदियों से अपने आसपास को पारदर्शिता समझने के लिए लेखक और पत्रकारों पर विश्‍वास करता आया है। इस विश्‍वास को कायम रखना बतौर लेखक सुदर्शन के लिए परीक्षा की घड़ी थी। पुस्‍तक से गुजरते हुए यह महसूस किया जा सकता है कि वे इस परीक्षाा में खरे उतरे हैं क्‍योंकि उन्‍होंने पूरी किताब में एक पक्षीय होते हुए निर्णय देने से स्‍वयं को बचाया है। वे तथ्‍यों को सिलसिलेवार रखते हैं, मुद्दों को टटोलते हैं और निर्णय पाठक पर छोड़ देते हैं। लेकिन ऐसा करते हुए स्‍वयं को बचाते नहीं है। वे तथ्‍य रखने के साथ संकेत में अपनी टिप्‍पणी रखते हैं ताकि पाठकों के आगे धुंध न रहे। 

मेरे इस कथन के समर्थन में पुस्‍तक का एक अंश देखना उपयुक्‍त होगा। सुदर्शन लिखते हैं, ‘‘इसमें कोई दोराय नहीं कि यूपीए के दस सालों और एनडीए के दस सालों में कई सारी गरीब कल्याण की योजनाओं और नीतियों के जरिये गरीबों और समाज में मुख्यधारा में पिछड़े वर्ग को लाभ हुआ है। हां, दोनों सरकारों की मतभिन्नता और नीति निर्धारण तथा योजनाओं के क्रियान्वयन के चलते एनडीए सरकार में उपलब्धियों के परिणाम जल्दी मिले हैं तो यूपीए सरकार में कुछ कम या देरी से मिल पाये। यूपीए सरकार की कुछ ऐसी नीतियां भी रही जिनको लागू उस समय किया गया लेकिन उन्हें धरातल पर ठीक तरह से उतारा नहीं गया, वहीं एनडीए सरकार में उन नीतियों के सही निर्धारण से वे जनहित में महत्वूर्ण साबित हुई है।’’ 

यह पुस्‍तक अंश एक बानगी है। पुस्‍तक बीते दो दशक की राजनीति को बातों से अलग कार्यों के आधार पर समझने में मददगार साबित होती है। अब तक अपनी कविताओं को पुस्‍तक के रूप में लेकर आए सुदर्शन व्‍यास का राजनी‍तिक विश्‍लेषण का यह पहला कदम जरूर है लेकिन इसे ठोस कदम कहा जाना चाहिए क्‍योंकि वे कहीं से भी अपरिपक्‍व या अतिरेक से भरे नजर नहीं आते हैं।

पुस्‍तक: ‘सत्‍ता के दो दशक, यूपीए और एनडीए सरकारों का सफरनामा’

लेखक: सुदर्शन व्‍यास, युवा पत्रकार, कवि

प्रकाशक: किताबगंज प्रकाशन, गंगापुर सिटी, राजस्‍थान

कीमत: 200/-
 
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