विचारोत्तेजक दस्‍तावेज है मुस्लिम जगत की कश्मकश पर ताजा किताब ‘उफ ये मौलाना’

Webdunia
शनिवार, 24 अक्टूबर 2020 (14:10 IST)
उफ ये मौलाना के मार्फत लेखक विजय मनोहर तिवारी ने भारत के संदर्भ में कोरोना काल में मुस्लिम जगत की हलचल का पैना विश्लेषण किया है...

पत्रकार-लेखक विजय मनोहर तिवारी की ताजा किताब ‘उफ ये मौलाना’ छपकर आ रही है। गरुड़ प्रकाशन की ओर से इसकी घोषणा की गई है। चार सौ बीस पेज की यह किताब कोरोना काल की एक डायरी की शक्ल में है।

इस किताब में भारत में कोरोना के आगमन के बाद के दो महीनों तक हुई घटनाओं का विश्लेषण किया गया है। किताब की थीम है- जब एक महामारी के कारण देश और दुनिया इतिहास की सबसे संकटपूर्ण स्थिति में फंसे हों और ऐसे समय समाज का कोई तबका अलग और उलट ढंग से पेश आए तो यह किसी भी सभ्य समाज और मजबूत सरकार के लिए नजरअंदाज करने वाली घटना नहीं है। भारतीय संदर्भ में यह किताब कोरोना काल का एक विचारोत्तेजक दस्तावेज है।

किताब के प्रोफाइल विवरण में कहा गया है- हम सब जानते हैं कि दुनियाभर में कोरोना एक महामारी की शक्ल में ही आया, लेकिन कोरोना के आगमन के साथ ही भारत में तबलीग की धुन अलग से सुनी गई। कोरोना एक वायरस था, जिससे निपटने के लिए अस्पतालों और डॉक्टरों को ही जुटना था। वे दुनियाभर में जूझ भी रहे थे, लेकिन भारत में डॉक्टरों से ज्यादा पुलिस, अदालत और जेलों में हलचल मची।

ऐसे दृश्य दुनिया के किसी भी देश में दिखाई नहीं दिए, जब गली-मोहल्लों में गए मेडिकल जांच दलों को बेइज्जत किया गया और उन पर जानलेवा हमले हुए। कुछ लोग कोरोना को मजाक समझ रहे थे। उन्हें लग रहा था कि यह उनके खिलाफ सरकार की कोई साजिश है, जो एक साथ इकट्‌ठे होकर इबादत से रोका जा रहा है या पूजास्थल बंद किए जा रहे हैं। कोरोना के विकट समय भारत का सामुदायिक चरित्र भी उजागर होता हुआ सबने देखा। शाहीन बाग का मजमा सिमटते ही जैसे उन्हीं आवाजों का शोर कोरोना पर सवार हो गया था।

लेखक विजय मनोहर तिवारी 25 साल तक प्रिंट और टीवी में रहे हैं। वे आउटडोर रिपोर्टिंग के लिए पांच साल तक लगातार भारत की आठ यात्राएं करने वाले देश के इकलौते पत्रकार भी हैं। इससे पहले उनकी छह किताबें छपी हैं, जिनमें वर्ष 2005 में एक बांध में डूबे एक शहर की जीवंत गाथा ‘हरसूद 30 जून’ चर्चित रही थी, जिसे भारतेंदु हरिश्चंद्र पुरस्कार मिला था। साल 2006 में भारत यात्राओं पर आई किताब ‘भारत की खोज में मेरे पांच साल’ को भी मप्र साहित्य अकादमी ने पुरस्कृत किया था।

‘उफ ये मौलाना’ में भारतीय मुस्लिम समाज की विसंगतियों को एक ऐसे दिशाहीन समाज के रूप में रेखांकित किया गया है, जो कई ऐसे कारणों के चलते भी सुर्खियों में बना रहता है, जिसका मूल रूप से उससे कोई लेना-देना नहीं है। जैसे-सीएए के समय पूरे देश में शाहीनबाग की कड़वी फसलें उगाईं और कोरोना में बेवजह बेहूदगी होती रही।

किताब मुस्लिम समाज के खामोश बौद्धिक तबके और मुखर मजहबी नेतृत्व की रुढ़िवादी सोच पर भी विचारोत्तेजक टिप्पणी है। कोरोना काल में पड़ोसी देशों की हलचल को भी छुआ गया है। उन वीडियो का तीखा विश्लेषण इसमें पढ़ने को मिलेगा, जो देशभर के मौलानाओं ने कोरोना की आमद के समय जारी किए थे और इसे मुसलमानों के खिलाफ सरकार की साजिश निरुपित किया था। गरुड़ प्रकाशन ने हाल ही में दिल्ली दंगों पर भी किताब प्रकाशित की है।

सम्बंधित जानकारी

Show comments

वर्कआउट करते समय क्यों पीते रहना चाहिए पानी? जानें इसके फायदे

तपती धूप से घर लौटने के बाद नहीं करना चाहिए ये 5 काम, हो सकते हैं बीमार

सिर्फ स्वाद ही नहीं सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है खाने में तड़का, आयुर्वेद में भी जानें इसका महत्व

विश्‍व हास्य दिवस कब और क्यों मनाया जाता है?

समर में दिखना है कूल तो ट्राई करें इस तरह के ब्राइट और ट्रेंडी आउटफिट

Happy Laughter Day: वर्ल्ड लाफ्टर डे पर पढ़ें विद्वानों के 10 अनमोल कथन

संपत्तियों के सर्वे, पुनर्वितरण, कांग्रेस और विवाद

World laughter day 2024: विश्‍व हास्य दिवस कब और क्यों मनाया जाता है?

फ़िरदौस ख़ान को मिला बेस्ट वालंटियर अवॉर्ड

01 मई: महाराष्ट्र एवं गुजरात स्थापना दिवस, जानें इस दिन के बारे में

अगला लेख