नरक ले जाने वाली लिफ्ट

राजकमल प्रकाशन

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पुस्तक के बारे में
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प्रसिद्ध कथाकार राजेन्द्र यादव ने विश्व साहित्य से 1952 से 1965 के बीच इस संग्रह की रचनाओं का चयन किया। जिस तरह इन रचनाओं का चयन विभिन्न काल-खंडों में किया गया, उसी तरह इनका अनुवाद भी विभिन्न काल-खंडों में किया गया। यही वह विशिष्ट कारण है जो पाठकों को इस पुस्तक को पढ़ने के लिए अपनी और आकर्षित कर सकता है। क्योंकि इसके माध्यम से राजेन्द्र यादव की लेखन शैली की विविधता से परिचित हुआ जा सकता है। इस संग्रह में 16 विदेशी कहानियाँ हैं। एक लघु उपन्यास और 1857 पर अंग्रेज कवि अर्नेस्ट जोन्स की दुर्लभ दस्तावेजी कविता भी इसमें संकलित है।

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पुरुषों द्वारा इस्तेमाल किए गए तरीकों में कभी फर्क नहीं होता। सबसे पहला कदम होता है एक औढ़ी गई दृढ़ उदासीनता और चाँद के ख्याल में डूबे रहने का अभिनय। दूसरा कदम हमारे शरीर पर उड़ती हुई निगाह, जो लगती तो हमारे चेहरे पर ठिठकती-ठहरती सी है लेकिन जिसका एकमात्र उद्देश्य हमारे और अपने पाँव की दूरी नापना होता है। बस, इतनी सी बात पता चल गई। अब विजय यात्रा शुरु होती है। मेरी समझ से पुरुषों द्वारा किए जाने वाली इन गुपचुप हरकतों से ज्यादा हास्यास्पद शायद ही कोई चीज हो।
( उरुग्वाय-लेटिन अमेरिक‍ी कहानी- एक टिप्पणी से)
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' अगर तुम ना होते तो इस जगह से मैं जिन्दा बच कर नहीं निकल पाती' स्त्री ने बुदबुदाकर कहा पुरुष ने उसे खींच कर अपने से सटा लिया। देर तक उनका चुंबन चलता रहा। आलिंगन के बाद जब उसकी साँस वापस आई तो बोली, ' ख्याल तो करो, उस कमबख्त ने क्या कर डाला? लेकिन उसके दिमाग में हमेशा से ही ऐसी खुराफातें भरी थीं। कभी किसी बात को उसके सही रूप में सहज और स्वाभाविक ढंग से लेना उसने सीखा ही नहीं। हर वक्त जैसे उसके सामने जिंदगी और मौत का सवाल बना रहता हो।
( स्कैडिनेवियन कहानी 'नरक ले जाने वाली लिफ्ट से')
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अब तक पश्चिम के कूच नगाड़े नहीं बजे थे
सारी धरती की दृष्टि लगी थी हिन्दोस्ताँ पर।
बादल-दल घुमड़े आते थे,
घाटी-घाटी में
मैदानों में उमस भरी थी
अंग्रेजों के पाँवों की धरती ज्वालामुखी सी धधक उठी थी।
दूर हिमालय की चोटी पर महाभयंकर
रह-रह कौंधा लपक रहा था युद्ध-दूत सा।
(' मुक्त हुआ हिन्दोस्ताँ आखिर' से)
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समीक्षकीय टिप्पणी

इस संकलन की लगभग सारी कथा-रचनाएँ क्लासिक तर्ज की है और उनकी अदभुत बुनावट है। आधुनिक संवेदना की प्रयोगशील कहानियों के लिए जैसा संकलन जितेन्द्र भाटिया ने ' सोचो साथ क्या जाएगा' शीर्षक से तैयार किया है- इस संकलन की तुलना उससे की जा सकती है। कहानियों का चुनाव और अनुवाद दोनों ही लाजवाब है। इन कहानियों को पढ़ना अपने आप में एक अनोखा अनुभव है। अपने से अलग बाहर की दुनिया की यात्राओं जैसा। ये यात्राएँ जीवन के विविध पक्षों को समेटती हुई नवीन समझ को विकसित करती है।

नरक ले जाने वाली लिफ्ट
( विश्व की रचनाओं से चुनाव)
अनुवाद : राजेन्द्र यादव
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन
पृष्ठ : 210
मूल्य : 275 रुप ए

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