सितारों के आँसू

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लोकतंत्र पूछ रहा प्रश्नों के उत्तर
ले चले हो देश की नैया किधर?
खंड-खंड रुकती हुई धार पर
भिन्ना दिशा में चली पतवार पर

कलम का पैनापन जब शब्द रूप में कागज पर उतरता है तो फिर किसी अन्य क्रांति की आवश्यकता नहीं होती। देश, समाज, व्यवस्थाओं के प्रति मन में जो क्षोभ होता है, वह शब्दों के रूप में व्यक्त होने का रास्ता ढूँढता है। ऐसे में रचना एक माध्यम बन जाती है, अपनी बात कहनेका। सगीर एहमद चौधरी का रचना संग्रह 'सितारों के आँसू' इसका उदाहरण है।

इस संकलन में गीत, कविताएँ तथा गजल तीनों शामिल हैं। इनमें से ज्यादातर देश की व्यवस्थाओं तथा देशप्रेम से संबंधित हैं।

कुल 73 रचनाओं में समाज, राजनीति, लोगों की बदलती मानसिकता, प्रेम, अराजकता आदि विषयों पर कलम चलाई गई है। सर्वशक्तिमान की आराधना से संग्रह का आरंभ कर रचनाकार ने समाज में फैले वर्गभेद को मिटाने की कामना की है। उन्होंने समाज के बदलते स्वरूप पर भी चोट की है-

क्यों खो गए हैं, बंधु-मीत, संस्कार तक?
रावण यहाँ है, कंस यहाँ आर-पार तक
जुल्मो-सितम बढ़े हैं सदा ही अनीत से
हम लोग कुछ तो सीख लें, अपने अतीत से।

उन्होंने देश को बाँटने वालों पर भी कटाक्ष करते हुए लिखा है

  कलम का पैनापन जब शब्द रूप में कागज पर उतरता है तो फिर किसी अन्य क्रांति की आवश्यकता नहीं होती। देश, समाज, व्यवस्थाओं के प्रति मन में जो क्षोभ होता है, वह शब्दों के रूप में व्यक्त होने का रास्ता ढूँढता है...      
जाति-धर्म, भाषा कई मुद्दे
पहले हैं दरम्यान में
और न खींचो दीवारें
अब मेरे हिंदुस्तान में।

संग्रह की भाषा सरल है तथा बीच में छोटे-छोटे मुक्तक भी अच्छे लगते हैं। व्यवस्थाओं पर किए व्यंग्य भी रचनाओं को पैना तथा सरस बनाते हैं।

* पुस्तक : सितारों के आँसू
* रचनाकार : सग़ीर एहमद चौधरी
* प्रकाशक : शार्प कम्प्यूटर एंड ग्राफिक्स, इंदौर

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