क्या यही है हिन्दी का अध्ययन?

Webdunia
- अखिलेश श्रीराम बिल्लौरे

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हिन्दी को समझना, जानना और पहचानना बहुत जरूरी है। आजकल कोई भी अन्य भाषा जानने वाला हिंदी को जाने बगैर टूटी-फूटी हिंदी में लेख, रचनाएँ लिख देता है। कतिपय प्रशंसक उनकी हौसला अफजाई करते नहीं थकते। कोई यदि गलती निकालता है तो उसे बुरा समझा जाता है। य‍ह नहीं समझते कि वह क्यों कह रहा है, ऐसा। हिंदी भाषी तो चाहते हैं कि दुनिया के सभी लोग हिंदी बोलें, हिंदी में व्यवहार करें पर इसका यह मतलब नहीं कि हिंदी को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किया जाए। उदाहरण के लिए मैंने एक ऐसे ही व्यक्ति का लिखा पढ़ा- ‘वहाँ चार पुरुष खड़ी थी । ’ मैं जब स्कूल में पढ़ता था तब मेरा एक दोस्त मुझसे कहता- ‘तू कॉपी लाई कि नहीं? तूने होमवर्क कर ली । ’

अब प्रश्न यह उठता है कि यदि ऐसे लोगों को सिखाया नहीं जाए तो क्या किया जाए। यदि समझदार होगा तो सीखेगा और नहीं तो बुरा मानकर बैठ जाएगा। अब मैं क्या करूँ मुझसे हिंदी का अपमान बर्दाश्त होता नहीं और मैं कह बैठता हूँ। इस कहने-सुनने में सामने वाला जो वैसे ही हिंदी समझता नहीं, यह मान बैठता है कि हम उसका मजाक उड़ा रहे हैं। अब यदि उसकी बात मान ली जाए तो यह हिंदी के प्रति अपमान होगा और नहीं मानी जाए तो वह यह समझेगा कि मुझे ये लोग हँसी का पात्र बना रहे हैं। मतलब इधर भी खाई और उधर भी खाई, बीच में कुएँ वाले बैठ गए हैं।

मतलब आपको सब तरह से मरना ही है। कतिपय लोग कहते हैं कि हिंदी क्या है, आजकल हिंदी की क्या कीमत है, कौन पूछता है हिंदी पढ़ने वालों को, अँग्रेजी का बोलबाला है । आजकल, क्या देश आजाद हुआ तब से ही हिंदी की हिमाकत करने वाले कतिपय लोग अपने बच्चों को अँग्रेजी स्कूल में भर्ती कराते आ रहे हैं। जब वे भाषण देने खड़े होते हैं तो उसके पहले कहते हैं- मेरी स्पीच कहाँ गई। वह पेपर, हीयर, जल्दी, नॉनसेंस...!
  हिंदी भाषी तो चाहते हैं कि दुनिया के सभी लोग हिंदी बोलें, हिंदी में व्यवहार करें पर इसका यह मतलब नहीं कि हिंदी को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किया जाए। उदाहरण के लिए मैंने एक ऐसे ही व्यक्ति का लिखा पढ़ा- ‘वहाँ चार पुरुष खड़ी थी।’      


अब क्या कहने ऐसे हिन्दी की हिमाकत करने वालों के। एक बार हिंदी दिवस पर एक सज्जन भाषण दे रहे थे। हिंदी हमारी माता है। हमें हिंदी में ही बोलना चाहिए। हिंदी में काम करना चाहिए। अपने बच्चों को भी हिंदी विद्यालय में पढ़ाना चाहिए। जब उनसे पूछा गया कि उनका पुत्र तो कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ता है तो वे खिसिया गए। खिसक लेने में उन्होंने अपनी भलाई समझी। इस प्रकार के ‍लोगों को हिंदी दिवस पर मुख्य अतिथि या अध्यक्ष बनाने से कौन सा हिंदी का सम्मान हो रहा है ।

चाहिए तो यह कि हिंदी दिवस वर्ष में एक दिन न मनाते हुए हर दिन मनाया जाना जरूरी है। साथ ही समय के साथ चलने में ही बुद्धिमानी है। अँग्रेजी को बुरा नहीं मानना चाहिए। इतिहास गवाह है कि जिस चीज का हिंदुस्तान में विरोध हुआ है, वह और अधिक लोकप्रिय हुआ है। या कहें कि उसका प्रसार बढ़ा ही है। अभी सोचते हैं कि अँग्रेजी का विरोध करके हम बड़ा कार्य कर रहे हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आधुनिक युग में बिना अँग्रेजी के कहीं नौकरी नहीं मिल रही है ।

आप स्वयं अपने नौनिहालों को अँग्रेजी ही पढ़ाना चाहते हैं। कहते हैं कि हिंदी तो वह यूँ ही सीख लेगा। स्वाभाविक है कि घर में यदि हिंदी बोली जाएगी तो वह जरूर सीखेगा क्योंकि वातावरण हिंदी का मिलेगा। लेकिन वह लिखना-पढ़ना शायद नहीं सीख पाए।

ऐसे में जरूरी है कि हिंदी का ज्ञान भी बच्चों को दिया जाए। हिंदी के गूढ़ अर्थ समझाएँ जाएँ। वर्षों पहले मैं एक स्कूल में हिंदी पढ़ाया करता था तब बच्चे हिंदी में गृहकार्य करना बोझ समझते थे। कहते थे कि सर, हिंदी में तो हम निकल जाएँगे। हमें गणित-अँग्रेजी में पढ़ना है। परीक्षा के समय दो-तीन निबंध याद कर लेंगे। दो-चार कविताओं के अर्थ और पत्र तथा प्रश्नोत्तर, बस हो गया हिंदी का अध्ययन!

मैं अपना सिर पीट लिया। सोचा क्या यही है हिंदी का अध्ययन।
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