व्यंग्य आलेख : हिन्दी किसकी भाषा ?

Webdunia
एम.एम. चन्द्रा 
कई दिन से हिन्दी दिवस को लेकर बहुत गहमा गहमी देखने को मिल रहा है। तमाम अखबार और संवाद माध्यमों को देखकर लगता है कि भारत ही नहीं पूरी दुनिया ही हिंदीमय हो गई है। हिंदी दिवस पर जब सभी दोस्त लेख, कविता, आलोचना, पुरस्कार ले देकर, बहती गंगा में हाथ धो रहे थे, तो मुझे भी तो कुछ न कुछ करना ही था।
 
उसी दौरान हमारे एक मित्र ने हमसे कहा कि - आप कोई न कोई योजना पर पर काम करते रहते हैं। क्यों न हिंदी दिवस पर भी आप कोई योजना बनाएं ताकि हिन्दी पर भी कुछ काम हो सके। हम भी उनकी बात को टाल न सके और सोचने लगे की क्या करे? मैंने सबको पढ़ना शुरू किया कि हमारे मित्र हिंदी के लिए क्या कर रहे है।
 
हमने भी भैया कलम उठाई और छोटा सा एक संदेश अपने मित्रों, छात्रों, लेखकों और प्रकाशकों को भेज दिया। संक्षिप्त संदेश आपके सामने है – “भारत हिन्दी के महान विभूतियों वाला देश है जिन्होंने न सिर्फ भारत को, बल्कि पूरे विश्व को अपनी हिन्दी से राह दिखाई है। किन्तु आज पूरी दुनिया अहिंसा, अराजकता, अधैर्य, अलगाव, स्वार्थ जैसी प्रवृत्तियों का शिकार है। मनुष्य के व्यक्तित्व में गिरावट भी आ रही है। मनुष्य में सामूहिकता, सामाजिकता और सृजनशीलता का अभाव देखा जा रहा है। हिंदी के ऐसे कठिन दौर में विश्व को रह दिखाने के लिए हमें मिलजुलकर हिंदी दिवस पर कुछ करना चाहिए। आपकी सहमति और योजनाओं का इंतजार रहेगा। आपके उत्तर की प्रतीक्षा में आपका अपना दोस्त।”
 
तुरंत ही एक मित्र का जवाब आता है - ‘मित्र आपका संदेश मिला, लेकिन यह जानकर बहुत दुःख हुआ कि आपके संदेश के अधिकतर शब्द कमीनिस्ट हैं। यह हिन्दी भाषा के लिए बहुत खतरनाक है। अतः आपको इन शब्दों को बदल देना चाहिए।’
 
मैंने भी मित्रता धर्म निभाते हुए आपने लिखे संदेश के कुछ शब्द तुरंत बदल दिए और भेज दिए। बदले हुए शब्द कुछ इस प्रकार है -‘आज पूरी दुनिया जाति-धर्म सम्प्रदाय, भाषा, क्षेत्रवाद जैसी प्रवृत्तियों का शिकार हैं।’
 
उसी मित्र का फिर से जवाब आता है कि मित्र आपने शब्द बदले अच्छा लगा, किन्तु इन शब्दों के बदलने से कमीनिस्ट भाषा नहीं गई। अतः आप इस पूरी लाइन को हटा दे तो बात बन सकती है।
 
इसी दौरान एक दूसरे मित्र का भी जवाब आता है- ‘मित्र आपका संदेश मिला। यह जानकर अच्छा लगा कि आप हिन्दी में कुछ करना चाहते हैं, लेकिन आपके संदेश में किन्तु-परन्तु का प्रयोग किया है, यह संघी भाषा है। अतः आप शब्दों के चयन में सतर्कता रखें, शब्दों का चयन ही आपकी अपनी भाषा है, आपका व्यक्तित्व है। मुझे उम्मीद है कि आप इन शब्दों को हटा देंगे।
 
अब मेरी समझ में आ रहा था कि किसी शब्द का प्रयोग भी राजनीति का हिस्सा हो सकती है। हिंदी भाषा, हिंदी की नहीं बल्कि राजनीति की भाषा है। तब हमने तय किया और एक बिना शब्दों के अपना संदेश अपने मित्रों भेज दिया, ताकि मेरा संदेश सब अपनी अपनी सुविधा के अनुसार समझ सके।
 
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