होली का हुड़दंग है : होली की फनी कविता

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- समीर इन्दौरी
 
होली का हुड़दंग है
 
यहां-वहां सब दूर।
 
छोटे-बड़े सब बन गए
 
रंगारंग लंगूर।
 
कॉलोनी की भाभियां
 
कॉलोनी के देवर,
 
रंगधार बरसा रहे
 
पिचकारी ले-लेकर।
 
कसी-कसी-सी सेक्रेटरी
 
फंसी-फंसी-सी ड्रेस,
 
देख-देखकर हो रहे
 
बॉस बड़े इंप्रेस।
 
बोले - सजनी! होली पर
 
रहेगा दफ्तर क्लोज,
 
पर तुम छम्‌ से आ जाना
 
खूब करेंगे मौज।
 
सेक्रेटरी ने कहा - रंग का
 
शौक नहीं अलबत्ता,
 
फिर भी सोचूंगी, यदि मिले
 
मोटा-सा होली-भत्ता। 

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