सुखीराम दुखीराम का चुटकुला हंसा देगा : शादी टाल दीजिए

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सुखीराम के घर शादी है। वे धूप में बैठे शेव बना रहे है, तभी उनके समधी दुखीराम की चिट्ठी आती है।
 
लोकल समधी है… फोन भी कर सकते थे। दूत के साथ ये चिट्ठी कैसी…?  चेहरे पर लगा साबुन पोंछ, घबराए हुए सुखीराम चिठ्ठी पढ़ने लगे…
 
लिखा था .. "आदरणीय समधी साहब,  आप सब राजी होंगे, हम भी यहां राजी खुशी है…
आगे के समाचार बहुत दुखी मन और भारी दबाव में हाथ जोड़ कर लिख रहा हूं कि हमें प्रभु की ईच्छा से इस भयकंर सर्दी में शादी को टालना ही पड़ेगा। मानता हूं कि बहुत नुकसान होगा। बातें भी होगी..  सिर्फ चार दिन और बचे है, तैयारियां पूरी है लेकिन कारण गंभीर है…
 
समधी साहब, शादी औरतों का उत्सव है.. हम आदमी तो भागा दौड़ी में रह जाते है.. शादी में रंग तो औरतों से ही आता है। कल रात से ही आपकी समधन और उसकी सहेलियां जान खा रही है कि इतने मंहगे कपड़े.. साड़ियां.. ब्लाउस.. ज्वैलरी आदि खरीदे पर कोई मतलब ही ना रहा… बोली कि सर्दी में शॉल लपेटेगें तो देखेगा कौन.. मन दुखेगा हमारा । और ना लपेटो तो मरो ठंड से.. यानी दोनों तरह से मरना तो औरतों को ही है।
 
आपकी समधन ने साफ कह दिया है कि..  पहली बार तो दो हजार का डीप गले वाला डिजाईनर ब्लाऊस सिलवाया ..अब उस पर 200 की शॉल औढ़कर इज्जत खराब कर दूं …?
 
कौन देखेगा चार लाख का नेकलेस जो नक्षत्रा से खरीदा.. बोलो ?...
 
फिर बोली कि.. शादी सिर्फ फैरों के लिए नहीं होती… शादी हम औरतों का "फैशन शो" है.. फैरे तो मंदिर में भी हो सकते है। लेकिन शादियों में ही पता चलता है कि औरतों में कौन आज भी हेमा मालिनी है और कौन आज की दीपिका…
 
क्या करुं ब्याई साहब.. मैने उसको खूब समझाया कि तेरे को झांकी ही दिखानी है तो शॉल की जगह पापड़ सुखाने वाली पॉलिथिन औढ़ लेना.. वो ट्रांसपेरेन्ट है सब दिखता रहेगा… लेकिन मेरी इस बात से कल रात का खाना जहर हो गया…
 
आप शादीशुदा है, सब समझ रहे होगें.. मैने उसको अपना उदाहरण भी दिया.. कि देख, मैं कहां तैयार होता हूं… तो बोली कि आपकी तो शक्ल ही ऐसी है… ना कुछ जमता है ना फबता है… पच्चीस साल से इसी मरे मरे से चेहरे को देख देखकर बोर हो गयी मैं तो…
 
बाकि सारी औरतें भी उसके साथ है .. बोल रही है कि भला शादी में ही कपड़े ना पहने तो उनका फिर क्या अचार डालेगें क्या .. वैसे ही आधी जिन्दगी रसोई में निकल गयी है… (आधी पार्लर में, पर ये कहा नहीं )
 
समधी साहब..थोड़ा लिखा ज्यादा समझना..
पुनश्च क्षमा याचना सहित..
आपका समधी …
दुखीराम
( फरवरी एंड या फिर मार्च के लिए पंडित से मैं बात कर लूंगा )
 
सुखीराम चिट्ठी पढकर पत्थर हो गए लेकिन अतिक्रमण वाले छज्जे की तरह सुखीराम के कंधे पर झुकी उनकी श्रीमती जी मंद मंद मुस्कुरा रही थी…बोली कि.. मैंने भी पढ़ ली है… फरवरी लास्ट में ही रख लो..

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