एक ज्वलंत प्रश्न है "कमर्शियल सरोगेसी"

Webdunia
सोमवार, 13 जून 2016 (11:38 IST)
रविकांत राउत 
भारत सरकार ने “कमर्शियल-सरोगेसी”  को अवैध घोषित करने की तैयारी कर ली है। ये निषेध सिर्फ इस मायने में अमंगल कारी या अनर्थकारी नही होगा कि भारत देश तेजी से बढ़ती करोड़ों-डॉलर की एक नई इंडस्ट्री से वंचित हो जाने वाला है, बल्कि इसलिए भी कि “भ्रूण की शक्ल में” एक मानव जीवन अपनी अस्तित्व रक्षा के लिए किसी की कोख पाने से वंचित रह जाएगा। मुद्दा सिर्फ व्यवसायिक नहीं, इसके मानवीय पहलू को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
 
इस आलेख को लिखने का उद्देश्य न सिर्फ इस विषय की जानकारी देना,  बल्कि जानकारी को रोचकता के साथ प्रस्तुत करने के अलावा इसके विभिन्न पहलुओं पर विचार–मंथन को उद्द्वेलित करना भी है। 
 
पहले ये जान लें कि “सरोगेसी” और “कमर्शियल-सरोगेसी” में क्या फर्क है। सरोगेसी यानि “किराए की कोख”। जो महिलाएं मां नहीं बन सकतीं, सरोगेसी उनके लि‍ए एक बेहतरीन वि‍कल्‍प है। सरोगेसी की जरूरत उस समय पड़ती है, जब कोई महिला किसी भी कारणवश गर्भ धारण नहीं कर सकती या फि‍र उसके गर्भाशय में कि‍सी प्रकार का संक्रमण हो जाता है। ऐसे में किराए के कोख के जरिए बच्चा आ सकता है। ये दो तरह की होती हैं, पहला……ट्रेडिशनल सरोगेसी और दूसरी, जेस्टेशनल सरोगेसी.....।
 
आइए पहले “ ट्रेडिशनल सरोगेसी”  को जानते हैं। इस प्रक्रिया में सरोगेट मां के गर्भ में पि‍ता बनने के इच्‍छुक पुरुष के शुक्राणुओं को सरोगेट महि‍ला के अंडाणुओं के साथ फर्टिलाइज किया जाता है। जो बच्चे इस प्रक्रिया के जरिए जन्म लेते हैं, उनमें जेनेटि‍क लक्षण पि‍ता के और सरोगेट मां के होते हैं। ये मामले तब होते हैं जब मां बनने की इच्छुक महिला(पत्नी) अपने “अंडाणु” पैदा कर पाने में सक्षम नहीं होती। 
 
दूसरा तरीका है “जेस्‍टेशनल सरोगेसी”। इसमे मां और बाप क्रमश: अपने “अंडाणु” और “शुक्राणु” पैदा कर सकने में तो समर्थ होते हैं, पर निषेचन के बाद “भ्रूण” को धारण करने में मूल मां, चिकित्सकीय कारणों से “असक्षम” होती है। ऐसे में परखनली में भ्रूण निषेचित कर “इन-विट्रो-फर्टिलाइज़ेशन” कर इसे सरोगेट मां के गर्भ में स्थापित कर दिया जाता है। ऐसे जन्मे बच्चे में उसके अपने मां और बाप दोनों के गुणसूत्रीय-लक्षण मौज़ूद होते हैं।
 
उक्त दोनों मामलों में पैसों का लेन-देन हो भी सकता है और नहीं भी। पैसों के लेन देन के साथ, विशेषकर विदेशियों के मामले में निष्पादित सरोगेसी “कमर्शियल-सरोगेसी “ कहलाती है, पर इन सबसे अलग ... ऐसी सरोगेसी जो शुद्ध परोपकार की भावना से की जाती है उसे “अल्ट्रुस्ट‍िक सरो‍गेसी” परोपकारी सरोगेसी  कहा जाता है, इससे कभी किसी सरकार को कोई आपत्ति नहीं रही है।

स्वीडन, नार्वे, जर्मनी, इटली और सिंगापुुर में किसी भी तरह की सरोगेसी पर पूर्णत: प्रतिबंध है। कनाडा, न्यूज़ीलैंड, ब्रिटैन, ग्रीस, डेनमार्क, नीदरलैंड और कुछ आस्ट्रेलियन –प्रदेशों में “परोपकारी – सरोगेसी” मान्य है।
पिछले हफ्ते सरोगेसी मामले में केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है। इसमें कहा गया है, देशीय दंपत्तियों को तो सरोगेसी की अनुमति होगी पर विदेशियों के लिए इस पर, जिसे “कमर्शियल सरोगेसी” कहा जा रहा है, पर पूरी तरह पाबंदी रहेगी। विदेशी को देश में सरोगेसी की इजाजत नहीं दी जाएगी। भ्रूण के आयात पर पाबंदी रहेगी और सिर्फ रिसर्च के लिए इसकी इजाजत दी जाएगी। इस चर्चा को तीन भागों में बांटा जा सकता है - 
 
1-   पहला तो इसका सामाजिक और भावनात्मक पहलू , 
2-   दूसरा इसका व्यवसायिक पक्ष 
3-   तीसरा व्यवहारिक और न्यायिक अधिकार का पक्ष 
 
पहले सामजिक पक्ष की बात की जाए। कुछ प्रश्न, कुछ तथ्य हैं जो “सरोगेसी” के विषय पर प्रकाश डाल सकते हैं - 
 
1-  पुरुषों की अक्षमता या ना-मौजूदगी पर पर-पुरुष द्वारा संतानोत्पत्ति की प्रकिया “नियोग” को भारतीय– पौराणिक आख्यानों में सम्मान-जनक स्थान प्राप्त है। आज भी स्पर्म-बैंकों में खिलाड़ियों, वैज्ञानिकों और फिल्मी सितारों के स्पर्म की डिमांड बनी ही रहती है।
 
2-  अपनी पत्नी के अतिरिक्त पर-स्त्री/ दासियों से उत्पन्न संतानों को भी पौराणिक मान्यता और विरासत के अधिकार को छोड़कर लगभग सभी सामाजिक अधिकार प्राप्त होते रहे हैं। महाज्ञानी “विदुर” और धर्म का पक्ष लेकर पांडवों की ओर से युद्ध करने वाला कौरव “युयुत्सु” जैसे कई प्रतिमान हमें मिल जाएंगे।
 
3-  कृष्ण का कारागार में देवकी के गर्भ से पैदा होना और पैदा होते ही उसे यशोदा को सौंप देना, इसके भीतर भी छुपे गुप्त–संकेतों को पकड़ने की जरूरत है।
 
4-  आज “लिव-इन-रिलेशन” को कानूनी मान्यता है और उनसे उत्पन्न संतानों को भी सभी सामाजिक और नागरिक अधिकार उच्चतम-न्यायालय द्वारा अश्योर्ड है।
 
5-  संतान-प्राप्ति और उसकी विरासिता का मौलिक अधिकार सभी युगलों को है, ऐसे में किसी शारीरिक व्यवधान का समाधान आधुनिक तकनीक से किया जा सके , जैसे “इन–विट्रो-फर्टिलाईजेशन” और “सरोगेसी” से तो इससे किसी भी देश के दंपत्ति हों, देशी या विदेशी इस अधिकार से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। 
 
6- यानि सरोगेसी को लेकर किसी धार्मिक या सामाजिक भ्रम की स्थिति से मुक्त होकर इसकी स्वाभाविक स्वीकार्यता मान ली जानी चाहिए, इस पर देशी–विदेशी का झगड़ा क्यों?
 
7- चिकित्सा के उद्देश्य से इस तरह भ्रूण पैदा किया जाना और उसे मारना जायज है?
 
भारत के मामले में 
भारत में दुनिया के एक तिहाई गरीब रहते हैं और आलोचक कहते हैं कि महिलाओं के इस ओर रुझान के पीछे ग़रीबी सबसे बड़ा कारण है।
डॉ. नयन पटेल कहती हैं कि भारत सरोगेसी का हब बन गया है। इसके पीछे कई कारण हैं। यहां अच्छी तकनीक उपलब्ध है और लागत भी अपेक्षाकृत कम है। यहां का कानून भी अनुकूल है।
 
भारतीय कानून के अनुसार पैदा होने वाली संतान पर सरोगेट माता का न तो हक होता है न ही जिम्मेदारी, वहीं पश्चिमी देशों में जन्म देने वाली माता ही असली मां मानी जाती है और जन्म प्रमाणपत्र पर उसी का नाम होता है।
 
भारत में पहला सरोगेट बच्चा 1994 में पैदा हुआ था, तब से लेकर अब तक तो भारत में किराए की कोख यानी सरोगेसी का बाजार लगभग 63 अरब रुपए से ज्यादा का हो गया है। गुजरात के एक छोटे से शहर आणंद में डॉ. नयन पटेल का अस्पताल है, इसे ही गुजरात की “बेबी-फेक्ट्री” कहा जाता है जहां एक समय में कम से कम 100 महिलाएं सरोगेट करती हैं।
 
भारत में जहां सरोगेसी इतने एडवांस स्टेज पर हो, वहां अचानक बिना सोचे समझे “कमर्शियल-सरोगेसी” पर प्रतिबंध लगा दें, तो कई तरह के उपद्रव खड़े हो जाएंगे। कुछ देशों के उदाहरण देना चाहूंगा जहां ऐसा हो चुका है – 
 
कुछ समय पहले तक कमर्शियल-सरोगेसी या यूं कहें “फर्टिलिटी –टूरिज्म” के लिए थाईलैंड सबसे पसंदीदा जगह रहा है। एक दिन अचानक सरकार ने इस पर निषेध लगा दिया। हजारों की तादाद में विभिन्न स्टेज में अजन्में बच्चों का भविष्य, सरोगेट माताओं का भविष्य अंधकार मय हो गया और तो और उन विदेशी दंपतियों का क्या होगा जिन्हें ये ही नहीं मालूम कि उनकी अजन्मी संतान कहां है और वो उसे कैसे पा सकेंगे।
 
भारत से जाकर नेपाल में विदेशियों के लिए सरोगेट करने वाली माताएं भी इसी नेक्सस का शिकार हुई, नेपाल की पिछले दिनों की भीषण भूकंपीय घटना के बाद मची अफरा-तफरी में जैसे ही ये पोल खुली, नेपाल सरकार ने अचानक अपने देश से “कमर्शियल-सरोगेसी” पर रोक लगा दी। 
 
हमारे देश में भी अचानक ऐसी पाबंदियां विद्ध्वंसकारी परिणाम पैदा कर देगा, विदेशियों द्वारा इसके दुरुपयोग को रोकने के लिये सुझाए गए विचारों के अधीन विदेशियों के लिए सरोगेसी को स्वीकार किया जा सकता है। ये किया जा सकता है कि 
 
•  ऐसे जोड़े तथा व्यक्ति जो सरोगेसी की प्रक्रिया पहले ही अपना चुके हैं, और जिनकी संतान जीवित है, उन्हें दुबारा जीवन में कभी भी इस बात की अनुमति नहीं होगी ।
•  संतान की पूरी जिम्मेदारी एक इस प्रयोजन विशेष के लिए निर्मित बीमा-पालिसी द्वारा कवर हो, मातापिता से इस पालिसी के प्रभावी रखे जाने की गारंटी उनकी सरकार ले। किसी आपात स्थिति में बीमा राशि की 50% रकम सरोगेट मां को प्राप्त हो।
 
•  सरोगसी के इच्छुक दंपतियों का वैवाहिक रिकार्ड अविवादित है एवं वो सरोगसी से प्राप्त संतान के वयस्क होने से पहले किसी भी दशा में तलाक नहीं लेंगे, इस बात का हलफनामा उनके द्वारा लिया जाना उनके सरकार की जिम्मेदारी हो और इसकी प्रति-गारंटी उनकी सरकार भारत सरकार के प्रति ले।
 
•  सरोगसी से उत्पन्न संताने दोनों देशों की (दोहरी) नागरिकता के पात्र हों, उन्हें दोनों देशों के समस्त संवैधानिक अधिकार प्राप्त हों। बैन लगाना आसान है पर सभी तकनीकी पहलुओं पर विचार कर व्यापक सोच के साथ। 
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