भूख का इतिहास- भूगोल...!

Webdunia
-तारकेश कुमार ओझा 
क्या पता जब न्यूज चैनल नहीं थे तब हमारे सेलिब्रिटीज जेल जाते थे या नहीं? लेकिन हाल-फिलहाल उनसे जुड़ी तमाम अपडेट सूचनाएं लगातार मिलती रहती हैं। जब भी कोई सेलिब्रिटीज जेल जाता है तो मेरी निगाह उस पहले समाचार पर टिक जाती है जिसमें बताया जाता है कि फलां अब कैदी नंबर इतना बन गया है, जेल की देहरी लांघते ही मेनू में उनके सामने फलां-फलां चीजों की थाली परोसी गई, लेकिन जनाब ने उसे खाने से इंकार कर दिया।

हालांकि इसके बाद की खबर नहीं आने से मैं समझ जाता हूं कि बंदे का यह आंशिक अनशन कुछ घंटों के लिए ही रहा होगा। हलवा-पूरी की जगह भले ही चपाती के साथ आलू दम दिया गया हो, लेकिन खाया जरूर होगा। वर्ना सेलिब्रिटी के लगातार खाना न खाने की भी बड़ी-बड़ी सुर्खियां बनतीं जिस पर चैनलों की टीआरपी निर्भर करती। दरअसल, भूख का इतिहास-भूगोल भी बड़ा विचित्र है। गांव के बूढ़-पुरनियों का तो शुरू से यह ब्रह्मास्त्र ही रहा है कि जब भी कुछ मन के हिसाब से न हो, तो तुरंत भूख-हड़ताल शुरू कर दो। फिर देखिए कैसे कुनबे में हड़कंप मचती है।

अनशन खत्म होने तक इमर्जेंसी-सी लग जाती है, बिलकुल उसी तरह जैसे सेलेब्रिटीज कैदी के न खाने से जेल में हड़कंप मच जाता है। चमकते-दमकते सितारों की तरह दद्दा-ताऊ के मामले में भी यही होता आया है, क्योंकि भूख को भला कोई कितने दिन बर्दाश्त कर सकता है? चंद घंटों की सनसनी के बाद बीच का कोई न कोई  'सम्मानजनक रास्ता' निकल ही आता है। छात्र जीवन में अनेक ट्रेड यूनियन आंदोलन को नजदीक से जानने-समझने का मौका मिला जिसके दो प्रमुख हथियार होते थे- आम हड़ताल और भूख हड़ताल।

भूख हड़ताल के दौरान विरोधियों की इस कानाफूसी पर बड़ा आश्चर्य होता जिसमें आरोप लगता कि कथित अनशन के दौरान अमुक-अमुक छिपकर माल-मलैया कूटते हैं। यहां तक कि अनशन स्थल के पास कुछ ऐसे कथित सबूत भी फेंक दिए जाते जिससे कि देखने वालों को आरोप में सच्चाई नजर आए। अलबत्ता इससे भूख हड़ताल करने वालों का मनोबल कम ही टूटता था।

लंबे अंतराल के बाद अनशन या भूख हड़ताल की असली ताकत का अंदाजा कुछ साल पहले अन्ना हजारे ने कराया, जब वे जनलोकपाल बिल समेत भ्रष्टाचार के विरोध में देश की राजधानी दिल्ली में अनशन पर बैठ गए। तब टेलीविजन के पर्दे पर नजरें गड़ाए हम लगातार सोचते रहते थे कि वाकई कोई इंसान क्या लगातार इस तरह भूखा रह सकता है? संभावना के अनुरूप ही तब सरकार भी हिल गई थी। हैरत की बात कि उन्हीं अन्ना हजारे ने हाल में उसी मुद्दे पर फिर वैसा ही अनशन-आंदोलन किया लेकिन असर के मामले में यह 2011 के पासंग भी नहीं पहुंच सका। अब तमिलनाडु से आई उस खबर पर गौर कीजिए जिससे पता चलता है कि जल विवाद पर अनशन करने वाले तमाम राजनेताओं ने चंद घंटों में ही भूख हड़ताल से नाता तोड़ बिरियानी का 'भोग' लगाना शुरू कर दिया।

दरअसल, भूख का मनोविज्ञान ही कुछ ऐसा है। बचपन में बड़ों की देखा-देखी हमने भी कुछ पर्व-त्योहारों पर उपवास रखना शुरू किया, लेकिन जल्द ही महसूस हो गया कि ऐसे मौकों पर जहन में खाने-पीने की बातें आम दिनों की तुलना में अधिक आती हैं तो जल्द ही इसका ख्याल भी छोड़ दिया। हालांकि उस जमाने में अनेक बाबाओं के बारे में सुनता था कि फलां पहुंचे हुए संत हमेशा भकोसने में लगे नहीं रहते। वे तो बस दो टाइम फलां-फलां फलों का फलाहार और सिंघाड़े के आटे से बने हलवा ही खाते हैं या फिर बहुत हो गया तो काजू और पिस्ता-बादाम के साथ ज्यूस वगैरह-वगैरह ले लिया। यानी बाबा के महत्व का अंदाजा उसके भूख सहने की क्षमता से लगाया जाता रहा है।

भुक्खड़ों की पार्टी ही नहीं, बल्कि सूटेड-बूटेड लोगों की बंद कमरे में होने वाली बैठकों के बाद भी मैंने जेंटलमैनों को खाने की मेज पर टूट पड़ते देखा है। जिसे देखकर हैरानी होती कि इतने बड़े-बड़े लोगों को भी कितनी तेज भूख लगती है। वाकई भूख का इतिहास-भूगोल बड़ा दिलचस्प रहा है।
Show comments

वर्कआउट करते समय क्यों पीते रहना चाहिए पानी? जानें इसके फायदे

तपती धूप से घर लौटने के बाद नहीं करना चाहिए ये 5 काम, हो सकते हैं बीमार

सिर्फ स्वाद ही नहीं सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है खाने में तड़का, आयुर्वेद में भी जानें इसका महत्व

विश्‍व हास्य दिवस कब और क्यों मनाया जाता है?

समर में दिखना है कूल तो ट्राई करें इस तरह के ब्राइट और ट्रेंडी आउटफिट

Happy Laughter Day: वर्ल्ड लाफ्टर डे पर पढ़ें विद्वानों के 10 अनमोल कथन

संपत्तियों के सर्वे, पुनर्वितरण, कांग्रेस और विवाद

World laughter day 2024: विश्‍व हास्य दिवस कब और क्यों मनाया जाता है?

फ़िरदौस ख़ान को मिला बेस्ट वालंटियर अवॉर्ड

01 मई: महाराष्ट्र एवं गुजरात स्थापना दिवस, जानें इस दिन के बारे में

अगला लेख