क्याेंकि वो है नि:शब्द...

Webdunia
आशुतोष झा 
हर बार की तरह इस बार भी उसकी बुद्धि ने हाथ खड़े कर दिए। जैसे तेज हवा, सूखे पत्तों को थाम कर चली जाती है...ठीक उसी तरह जैसे गर्म तवे पर पानी की बूंदें उड़ जाती हैं... जैसे इम्तिहान में ऐन मौके पर सूत्र भुला दिया जाए...।

वाणी ने नवजात की तरह लड़खड़ाना शुरू किया। इस बार भी बात करके यूं लगा कि कुछ रह गया है। कुछ रह जाता है हर बार। क्या? क्या ये? या कुछ और? क्या कहना था? क्या छूट गया...?
 
अटकलें और कल्पनाएं जितना हाथ पैर मारो उतना ही और जोर से गिर्द कसती जाती हैं। शायद ये कहना चाहिए था। शायद ये कहना जरूरी था। नहीं-नहीं, ये कहना सही नहीं था...शायद सही ही था।
 
नाव में बैठकर एक ही पतवार से खेता जा रहा है और नाव अपने स्थान पर ही वर्तुल में नाच रही है। तो चाहता क्या है? क्या पता है उसे? हां पता है। नहीं-नहीं उसे नहीं पता है। शब्द बयां नहीं कर सके आज तक। शायद वे उसे बयां कर भी नहीं सकते।
 
तो फिर? कुछ है जो बयां कर सकता है उसे जो हर बार वाणी की तहों से उतर जाता है। मेरे ख्याल से वो है 'नि:शब्द' ।
Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

क्या अपने पालतू जानवर के साथ एक बेड पर सोना है सही? जानिए क्या कहते हैं विशेषज्ञ

बदलते भारत में सेक्स बदलने की होड़, हॉर्मोन की गड़बड़ी या कोई मनोविकृति?

10 दिनों तक खाली पेट पिएं दालचीनी का पानी, फायदे जानकर रह जाएंगे दंग

ब्लड प्रेशर कंट्रोल करने में मददगार हैं आसानी से मिलने वाले ये 9 आयुर्वेदिक हर्ब्स

ये है मोबाइल के युग में किताबों का गांव, पढ़िए महाराष्ट्र के भिलार गांव की अनोखी कहानी

सभी देखें

नवीनतम

जगन्नाथ रथयात्रा: जन-जन का पर्व, आस्था और समानता का प्रतीक

क्या आप भी शुभांशु शुक्ला की तरह एस्ट्रोनॉट बनना चाहते हैं, जानिए अंतरिक्ष में जाने के लिए किस डिग्री और योग्यता की है जरूरत

शेफाली जरीवाला ले रहीं थीं ग्लूटाथियोन, क्या जवान बने रहने की दवा साबित हुई जानलेवा!

प्रधानमंत्री द्वारा ट्रंप से दो टूक बात के बाद झूठा नैरेटिव ध्वस्त हुआ

Shravan recipe: जानें कैसे बनाएं साबूदाने की स्वादिष्ट और पौष्टिक फलाहारी खिचड़ी

अगला लेख