रूला कर चल दिए मशहूर कार्टूनिस्ट सुधीर तैलंग

Webdunia
- प्रीति सोनी
कार्टून भले ही दुनिया की गतिविधियों का आइना हो, लेकिन कार्टूनि‍स्ट की अपनी एक दुनिया होती है। प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट सुधीर तैलंग भी कार्टून की दुनिया का जाना पहचाना नाम रहा जो बरसों बरस प्रमुख अखबारों के मुखपृष्ठ पर उनकी कला के जरिए छाया रहा।
सुधीर तैलंग कहा करते थे कि, वे बचपन में सिनेमा के गेटकीपर बनने का सपना देखते थे, लेकिल किस्मत ने उन्हें कार्टूनिस्ट बना दिया। एक बेहतरीन कार्टूनिस्ट होने के नाते राजनीतिक और सामाजिक गतिविधि‍यों को कार्टून कला के माध्यम से अखबार पर उकेरकर, समाज तक पहुंचाने का श्रेय उन्हीं को जाता है।
 
अपने कार्टूनों के माध्यम से विचारों की सशक्त सचित्र अभि‍व्यक्ति देने वाले प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट सुधीर तैलंग का जन्म सन 1970 में राजस्थान के बीकानेर में हुआ था। उन्होंने अपने करियर की शुरूआत सन 1982 में मुंबई के द इलस्ट्रेटर वीकली से की थी, जिसके एक साल बाद ही 1983 वे नवभारत टाइम्स दिल्ली के साथ शामिल हो गए।
 
टाइम्स ऑफ इंडिया और इंडियन एक्सप्रेस के साथ-साथ जीवन के कुछ वर्षों तक सुधीर तैलंग ने हिन्दुस्तान टाइम्स अखबार और एशि‍यन एज के लिए भी काम किया और हर दिन कार्टून बनाए। 
 
सन् 2004 में कार्टून कला के क्षेत्र में अपने अमूल्य योगदान के लिए सुधीर तैलंग को पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया ।  
 
सुधीर तैलंग भारत के नंबर वन राजनैतिक कार्टूनिस्ट रहे और राजनीति के साथ-साथ समसामयिक विषयों पर उनकी पढ़ाई और समझ के साथ संपर्क, उन्हें और उनके कार्टूनों को जीवंतता प्रदान करते रहे। हालांकि अपने कार्टून की प्रसिद्धि‍ के चलते वे कई प्रतिद्वंदियों के आंखों की किरकिरी भी बने, लेकिन अपने कार्य की तन्मयता में उन्होंने कहीं कमी नहीं आने दी। एक समय जब उनका ब्रेन ट्यूमर का ऑपरेशन होना था, उन्होंने डॉक्टरों से कहा था - आप मेरे ब्रेन से ट्यूमर निकाल सकते हो, ह्यूमर नहीं। 
 
वैसे तो सुधीर तैलंग द्वारा - 'नो प्राइम मिनिस्टर', 'क्रिकेट हियर एंड नाओ', 'हियर एंड नाओ: अ कलेक्शन ऑफ कार्टून' जैसी किताबें भी उन्होंने लिखी। लेकिन उनके द्वारा तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के संदर्भ में लोकार्पित की गई कार्टून पर आधारित पुस्तक नो प्राइम मिनिस्टर ने काफी सुर्खि‍यां बटोरी। 
 
अपने जीवन के अंतिम कुछ समय तक वे काफी बीमार रहे और इलाज का खर्च न उठा पाने की मुश्किलों से उन्हें दो-चार होना पड़ा। इस बुरे समय में उन्हें न तो सरकार द्वारा किसी प्रकार की आर्थ‍िक मदद की  गई ना ही कोई मीडिया हाउस या संस्था या घराना उनकी सहायता के लिए आगे आया। अंतत: 6 फरवरी 2016 को लंबी बीमारी के बाद, भारत ने इस बेहतरीन कार्टूनिस्ट को सदा के लिए खो दिया।
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