फणीश्वरनाथ रेणु : संवेदनशील साहित्यकार

जयंती विशेष : 4 मार्च

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साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर फणीश्वरनाथ रेणु का जन्म बिहार के अररिया जिले के औराही हिंगना ग्राम में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा फॉरबिसगंज तथा अररिया में पूरी करने के बाद उन्होंने मैट्रिक नेपाल के विराटनगर से कोईराला परिवार में रहकर की। 1942 में इन्टरमीडिएट काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से की।

तत्पश्चात वे स्वतंत्रता संग्राम आन्दोलन में सहभागी बने। 1950 में उस नेपाली क्रांतिकारी आन्दोलन में भी हिस्सा लिया जिसके फलस्वरुप नेपाल में जनतंत्र की स्थापना हुई । 1952-53 में वे भीषण रोगग्रस्त रहे। इस अवस्था में वे लेखन की तरफ मुड़े। उन्होंने हिन्दी में आंचलिक कथा की नींव रखी ।

रेणु की लेखन-शैली विवरणात्मक थी। उनके पात्रों की मनोवैज्ञानिक की व्याख्या इतने आकर्षक ढंग से सामने आती है कि पाठक का अपने परिवेश से संपर्क कट जाता है और स्वत: ही वह उपन्यास का हिस्सा बन जाता है।

रेणु की लेखन-शैली प्रेमचंद से काफी मिलती थी और उन्हें आजादी के बाद का प्रेमचंद भी माना जाता है।

उनकी रचनाओं में प्रमुख रूप से निम्नलिखित पुस्तकों का जिक्र किया जा सकता है।

उपन्यास

मैला आँचल
परती परिकथा
कितने चौराहे
पलटू बाबू रोड
दीर्घतपा
जूलूस

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कथा-संग्रह
एक आदिम रात्रि की महक
अच्छे आदमी
अग्निखोर
ठुमरी

रिपोर्ताज
ऋणजल-धनजल
नेपाली क्रांतिकथा
वनतुलसी की गंध

प्रसिद्ध कहानियाँ
मारे गए गुलफाम (तीसरी कसम)
एक आदिम रात्रि की महक
लाल पान की बेगम
तबे एकला चलो रे
पंचलाइट
संवदिया
ठेस

विशेष
प्रथम उपन्यास मैला आँचल के लिए उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
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