मेरे मन की कच्ची किनारियों पर अब भी टँका है तुम्हारी नजरो ं के स्पर्श का लटकन सितारा झरा दो उसे, कहीं से आकर या उखाड़ द ो, क्योंकि उसकी कसैली चमक से ज्यादा प्यारी है मुझे अपनी सादी चुनरी जिसके छोर में आज भी कुँवारा रेशम गूँथा है। अब समझी हूँ कि च ुभ रहा है जो वह तुम्हारी नज र का कोमल सितारा था जिस पर कभी मैंने ही रूपहले सपनों को वारा था।