कुँवारा रेशम

फाल्गुनी

Webdunia
मेरे मन की
कच्ची किनारियों पर
अब भी टँका है
तुम्हारी नजरो ं के
स्पर्श का
लटकन सितारा
झरा दो उसे,
कहीं से आकर
या उखाड़ द ो,
क्योंकि उसकी
कसैली चमक से ज्यादा
प्यारी है मुझे अपनी सादी चुनरी
जिसके छोर में आज भी
कुँवारा रेशम गूँथा है।
अब समझी हूँ ‍कि
च ुभ रहा है जो
वह तुम्हारी नज र का
कोमल सितारा था
जिस पर कभी
मैंने ही
रूपहले सपनों को वारा था।
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