कच्ची केसरिया धूप में हल्की-हल्की तुम्हारी याद मेरा मन-आँगन वासंती फूलों से भर गया आज। कल रात गुलाबी फूलों की नदी में देर तक भीगतीं रही मैं, डूब जाती मगर तुम्हारी आवाज के तिनके के सहारे बचतीं रही मैं। तुम्हारी आवाज का वही तिनका शूल बन गया, जब तुम्हारा तीखा स्वर जुदाई का नीला फूल बन गया।