परीक्षाओं के दौर से गुजरता हुआ सत्य

राकेशधर द्विवेदी
वर्षों पहले जो सूली पर
लटकाया गया था वह सत्य था


 
वर्षों पहले जो कर्बला में
दफनाया गया था वह सत्य था।
 
वर्षों पहले जिसने अग्निपरीक्षा दी थी
वह सत्य था
 
वर्षों पहले जो अल्पायु में
वनवास के लिए निर्वासित हुआ था
वह सत्य था
 
वर्षों पहले जिसने विष का घूंट
पिया था वह सत्य था
 
समय बदलता रहा
सिद्धांत बदलते रहा
 
नित नए अनुसंधान होते रहे
लेकिन एक विशेषज्ञ इस
 
तथाकथित सभ्य समाज में अपने
सत्यनिष्ठा की परीक्षा दे रहा है
वह सत्य है
 
वह चाहे गांधी के रूप में हो
ये नेल्सन मंडेला के रूप में
 
मार्टिन लूथर किंग के रूप में
या दलाई लामा के रूप में
 
वह आज भी परीक्षाओं के
दौर से गुजर रहा है
 
वह हताश है निराश है
परेशान है लेकिन
वह पराजित नहीं होगा
 
क्योंकि आने वाली हर नई सुबह
की किरण को उसकी विजय का
इंतजार है। 

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