वो हिसाब नहीं माँगती

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शोभना चौर े
NDND
वो कभी हिसाब नहीं माँगती
तुम एक बीज डालते हो
वो अनगिनत दानें देती है
बीज भी उसी का होता है,
और वो ही उसे उर्वरक बनाती है
अपनी कोख में अनेक कष्ट सहकर
उस बीज को पुष्ट बनाती है
और जब अंकुरित हो
अपने हाथ पाँव पसारता है
तब वो खुश होती है
आनन्दित होकर तुम्हें पनपने देती है
किंतु तुम उसे कष्ट देकर
बाहर आ जाते हो
इतराने लगते हो
अपने अस्तित्व पर
पालते हो भरम अपने होने का
लोगों की भूख मिटाने का
तुम बड़े होकर फिर फैल जाते हो
उसकी छाती पर
अपना हक़ जमाने
तुम हिसाब करने लगते हो
उसके आकार का,उसके प्रकार का
भूल जाते हो उसकी उर्वरा शक्ति को,
जो उसने तुम्हें भी दीं
तुम निस्तेज हो पुनः
उसी में विलीन हो जाते हो
न ही वो बीज को दर्द सुनाती है
न ही बीज डालने वाले को
वो निरंतर देती जाती ह ै,
वो धात्री है।

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