हिन्दी कविता : शर्मिन्दा हैं हम

राकेशधर द्विवेदी
शर्मिन्दा हैं हम


 

 
क्योंकि हम उस एहसास को
प्रणाम नहीं कर पाए
जो मेरे गर्भ में आने
पर तुम्हें हुआ था
 
शर्मिन्दा हैं हम
क्योंकि हम उस वेदना को
समझ नहीं पाए
जो नौ माह
तुमने सहा था
 
शर्मिन्दा हैं हम
क्योंकि उस कष्ट को
हम समझ नहीं
पाए जो हमें
पालने में तुमने उठाए
 
शर्मिन्दा हैं हम
क्योंकि उस प्रयास
को हम सलाम नहीं
कर पाए
जो तुमने हमें
शिशु से इंसान
बनाने में उठाए
 
शर्मिन्दा हैं हम
क्योंकि हम उस वादे
को निभा नहीं पाए
जो दो वर्ष पूर्व
जंतर-मंतर और संसद
में हमने किया था
 
शर्मिन्दा हैं हम
क्योंकि हम तुम्हें
फिर सुरक्षा नहीं दे पाए
तुम रोती-चीत्कारती रही
हैवानियत का नंगा खेल
होता रहा
और समाज धृतराष्ट्र बना
देखता रहा
 
शर्मिन्दा हैं हम
क्योंकि आजादी के
सरसठ वर्ष बाद भी
हमारे अंदर का
दरिंदा जिंदा है।
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