दीप उत्सव पर कविता : चंचला...

Webdunia
-पंकज सिंह 
 
चंचला है वह,
मेरे घर क्यों आएगी। 
जो घर होगा जितना रोशन,
उस घर वह जाएगी।
 
उल्लू है उसका वाहन,
जहां चाहेगा वहां ले जाएगा।
दिखता होगा जहां माल,
सैर वहां की कराएगा।
 
तंत्र की इस रात में,
मंत्र कौन जप रहा। 
आना था मेरे यहां,
पथ उसका मोड़ रहा।
 
मौन तिमिर में कोलाहल हो रहा,
ताश के पत्तों में हालाहल दिख रहा।
जो जीता सिकंदर सा इतरा रहा, 
हारा हाला गले उतार रहा।
 
तम में शूल सा चुभ रहा,
निरीह मूक के प्राणों को भेद रहा। 
पटाखों के शोर से डर रहा,
गोडावण सा छिप रहा।
 
गगनचुंबी इमारतों में दीप जल रहा, 
दीपों का उत्सव बतला रहा। 
फूटपाथ को भी रोशन कर रहा, 
छिपाता था अंधेरा उधड़ा दिखला रहा। 

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

C-Section के बाद नहीं कम हो रही बैली, इन ट्रिक्स को अपनाने से मिलेगा फायदा

राइस वॉटर से बने इस कोरियन हेयर केयर मास्क से मिलेंगे घर पर ही सलून जैसे सॉफ्ट और सिल्की बाल

क्या बच्‍चों का माथा गर्म रहना है सामान्य बात या ये है चिंता का विषय?

क्लटर फ्री अलमारी चाहिए? अपनाएं बच्चों की अलमारी जमाने के ये 10 मैजिक टिप्स

सर्दियों में खुद को बनाए रखें फिट और तंदुरुस्त, पिएं ये प्राकृतिक हर्बल टी

सभी देखें

नवीनतम

प्रवासी कविता : कवयित्री की जिंदगी की किताब के कुछ पन्ने

Winter Special Diet : वजन घटाने के लिए इन 6 चीजों को जरूर अपने खाने में तुरंत शामिल करें, बनेगा परफेक्ट डाइट प्लान

प्रेग्नेंसी प्लान कर रही हैं तो अपनी डाइट लिस्ट से आज ही बाहर करें ये चीजें

भारतीय समाजसेवक ज्योतिबा फुले की पुण्यतिथि, जानें विशेष जानकारी

रसोई की इन 7 चीजों में छुपा है आपका स्किन ब्राइटनिंग सीक्रेट, तुरंत जानें इनके बेहतरीन फायदे

अगला लेख