Earth Day Poem : विश्व पृथ्वी दिवस पर हिन्दी कविता

Webdunia
- सुशील कुमार शर्मा 
पृथ्वी मेरी मां की तरह
चिपकाए हुए है मुझे
अपने सीने में।
 
मेरे पिता की तरह
पूरी करती है मेरी
हर कामनाएं।
 
पत्नी की तरह
मेरे हर सुख का ख्याल
उसके जेहन में उभरता है।
 
बहिन की मानिंद
मेरी खुशी पर सब निछावर करती।
 
भाई की तरह
मेरे हर कष्ट को खुद पर झेलती।
 
बेटी की तरह
मेरे घर को खुशबुओं से
करती सराबोर।
 
पृथ्वी एक नारी की प्रतिकृति
झेलती हर कष्ट
अपनों के दिए हुए दंश
लुटती है अपनों से
उसके बाद भी उफ् नहीं।
 
रुक जाओ दानवों
मत लूटो इस धरा को
जो देती है तुमको
अपने अस्तित्व को जीवनदान।
 
पर्यावरण को सुधारो।
नदियों को मत मारो
जंगलों पर आरी
खुद की गर्दन पर कटारी।
 
पॉलिथीन का जंगल
छीन लेगा तुम्हारा मंगल
वाहनों की मीथेन गैस
छीन लेगी तुम्हारी जिंदगी की रेस।
 
अरे ओ मनुज स्वार्थी...!
प्रकृति और पृथ्वी से तू जिंदा है
क्यों न तू अपने कर्मों से शर्मिंदा है।
 
भौतिकता का कर विकास
मत कर खुद का विनाश
कर इस धरती को सजीव
बन पृथ्वी का शिरोमणि जीव।
 

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

इन 6 तरह के लोगों को नहीं खाना चाहिए आम, जानिए चौंकाने वाले कारण

बहुत भाग्यशाली होते हैं इन 5 नामाक्षरों के लोग, खुशियों से भरा रहता है जीवन, चैक करिए क्या आपका नाम है शामिल

करोड़पति होते हैं इन 5 नामाक्षरों के जातक, जिंदगी में बरसता है पैसा

लाइफ, नेचर और हैप्पीनेस पर रस्किन बॉन्ड के 20 मोटिवेशनल कोट्स

ब्लड प्रेशर को नैचुरली कंट्रोल में रखने वाले ये 10 सुपरफूड्स बदल सकते हैं आपका हेल्थ गेम, जानिए कैसे

सभी देखें

नवीनतम

पाकिस्तान में बेनाम सामूहिक कब्रों के पास बिलखती महिलाएं कौन हैं...?

पांच जून को 53 साल के होंगे सीएम योगी, इस बार बेहद खास होगा उनका जन्मदिन

मिस वर्ल्ड 2025 ने 16 की उम्र में कैंसर से जीती थी जंग, जानिए सोनू सूद के किस सवाल के जवाब ने जिताया ओपल को ताज

ऑपरेशन सिन्दूर पर निबंध: आतंकवाद के खिलाफ भारत का अडिग संकल्प, देश के माथे पर जीत का तिलक

श्रीमती मालती जोशी की स्मृति में दो दिवसीय साहित्य का आयोजन

अगला लेख