ग़ज़ल- आज़ाद है ’शाहीन’, कैद में बाग है

पं. हेमन्त रिछारिया
सियासत की जाने कैसी ये आग है,
आज़ाद है ’शाहीन’, कैद में बाग है।
 
उन्हें सिखा रहे हो उसूल मुहब्बत के
नफ़रत से जिनके चूल्हों में आग है
 
ए गुमराह मुंसिफ़ पाकीज़ा ना तेरा दामन
मुफ़लिसों के लहू का उस पर भी दाग है
 
उनसे शिकायत कैसी वो गैर जो ठहरे
मुल्क जला रहे जो घर के चिराग हैं
 
गाफ़िल नहीं अजी हम खूब समझते हैं
तख्त-ओ-ताज की सारी ये दौड़ भाग है।

(शाहीन-बाज/शिकारी पक्षी, उसूल-सिद्धान्त, मुंसिफ़-न्यायाधीश, मुफ़लिस-गरीब/बेसहारा, गाफ़िल-विमुख/लापरवाह)
पं. हेमन्त रिछारिया
सम्पर्क: astropoint_hbd@yahoo.com 
 
 

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

इन 6 तरह के लोगों को नहीं खाना चाहिए आम, जानिए चौंकाने वाले कारण

बहुत भाग्यशाली होते हैं इन 5 नामाक्षरों के लोग, खुशियों से भरा रहता है जीवन, चैक करिए क्या आपका नाम है शामिल

करोड़पति होते हैं इन 5 नामाक्षरों के जातक, जिंदगी में बरसता है पैसा

लाइफ, नेचर और हैप्पीनेस पर रस्किन बॉन्ड के 20 मोटिवेशनल कोट्स

ब्लड प्रेशर को नैचुरली कंट्रोल में रखने वाले ये 10 सुपरफूड्स बदल सकते हैं आपका हेल्थ गेम, जानिए कैसे

सभी देखें

नवीनतम

हिंदी साहित्य के 15 शीर्ष उपन्यास जिन्हें पढ़े बिना अधूरा है किसी पाठक का सफर

स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी बिरसा मुंडा की मौत कैसे हुई?

अंतरिक्ष में नई कहानी लिखने की तैयारी, शुभ हो शुभांशु शुक्ला की अंतरिक्ष यात्रा

बीमारियों से बचना है तो बारिश में रखें ये 10 सावधानियां

मिलिंद सोमन की मां 85 साल की उम्र में कैसे रखती हैं खुद को इतना फिट, जानिए उनके फिटनेस सीक्रेट

अगला लेख