कवि गोपालदास नीरज की पुण्यतिथि, पढ़ें 5 कविताएं और 5 फिल्मी गीत

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Gopaldas Neeraj : आज यानी 19 जुलाई को प्रख्‍यात कवि और गीतकार तथा पद्म भूषण से सम्मानित गोपालदास नीरज की पुण्यतिथि है। उनका जन्म 4 जनवरी, 1925 को उत्‍तर प्रदेश के इटावा के पास ही एक छोटे से गांव पुरावली में हुआ था। आज भी हिंदी साहित्‍य में उनका नाम प्रमुखता से लिया जाता है। इतना ही नहीं आज भी उनकी कविताएं और फिल्मी गीत काफी पसंद किए जाते हैं। गीतकार गोपालदास 'नीरज' का निधन 19 जुलाई 2018 को दिल्ली के एम्स अस्पताल में हुआ था। 
 
 
आज उनकी पुण्यतिथि पर पढ़ें उनकी 5 खास कविताएं और 5 फिल्म गीत- 
 
5 खास कविताएं : gopaldas neeraj poems 
 
1. कारवां गुज़र गया
 
स्वप्न झरे फूल से,
मीत चुभे शूल से,
लूट गए सिंगार सभी बाग के बबूल से,
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे
कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे!
 
नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई,
पांव जब तलक उठे कि ज़िन्दगी फिसल गई,
पात-पात झर गए कि शाख़-शाख़ जल गई,
चाह तो निकल सकी न, पर उमर निकल गई,
गीत अश्क़ बन गए,
छंद हो दफ़न गए,
साथ के सभी दीये धुआं-धुआं पहन गए,
और हम झुके-झुके,
मोड़ पर रुके-रुके
उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे
कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे।
 
क्या शबाब था कि फूल-फूल प्यार कर उठा,
क्या सुरूप था कि देख आईना मचल उठा
इस तरफ जमीन और आसमां उधर उठा,
थाम कर जिगर उठा कि जो मिला नज़र उठा,
एक दिन मगर यहां,
ऐसी कुछ हवा चली,
लूट गई कली-कली कि घुट गई गली-गली,
और हम लुटे-लुटे,
वक्त से पिटे-पिटे,
सांस की शराब का खुमार देखते रहे
कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे।
 
हाथ थे मिले कि जुल्फ चांद की संवार दूं,
होंठ थे खुले कि हर बहार को पुकार दूं,
दर्द था दिया गया कि हर दुखी को प्यार दूं,
और सांस यूं कि स्वर्ग भूमी पर उतार दूं,
हो सका न कुछ मगर,
शाम बन गई सहर,
वह उठी लहर कि दह गए किले बिखर-बिखर,
और हम डरे-डरे,
नीर नयन में भरे,
ओढ़कर कफ़न, पड़े मज़ार देखते रहे
कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे!
 
मांग भर चली कि एक, जब नई-नई किरन,
ढोलकें धुमुक उठीं, ठुमक उठे चरण-चरण,
शोर मच गया कि लो चली दुल्हन, चली दुल्हन,
गांव सब उमड़ पड़ा, बहक उठे नयन-नयन,
पर तभी ज़हर भरी,
ग़ाज एक वह गिरी,
पुंछ गया सिंदूर तार-तार हुई चुनरी,
और हम अजान से,
दूर के मकान से,
पालकी लिए हुए कहार देखते रहे।
कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे।

2. मेरा गीत दीया बन जाए
 
अंधियारा जिससे शरमाए,
उजियारा जिसको ललचाए,
ऐसा दे दो दर्द मुझे तुम
मेरा गीत दीया बन जाए!
 
इतने छलकों अश्रु थके हर
राहगीर के चरण धो सकूं,
इतना निर्धन करो कि हर
दरवाजे पर सर्वस्व खो सकूं
 
ऐसी पीर भरो प्राणों में
नींद न आए जनम-जनम तक,
इतनी सुध-बुध हरो कि
सांवरिया खुद बांसुरिया बन जाएं!
 
ऐसा दे दो दर्द मुझे तुम
मेरा गीत दीया बन जाए!!
 
घटे न जब अंधियार, करे
तब जलकर मेरी चिता उजेला,
पहला शव मेरा हो जब
निकले मिटने वालों का मेला
 
पहले मेरा कफन पताका
बन फहरे जब क्रांति पुकारे,
पहले मेरा प्यार उठे जब
असमय मृत्यु प्रिया बन जाए!
 
ऐसा दे दो दर्द मुझे तुम
मेरा गीत दीया बन जाए!!
 
मुरझा न पाए फसल न कोई
ऐसी खाद बने इस तन की,
किसी न घर दीपक बुझ पाए
ऐसी जलन जले इस मन की
 
भूखी सोए रात न कोई
प्यासी जागे सुबह न कोई,
स्वर बरसे सावन आ जाए
रक्त गिरे, गेहूं उग आए!
 
ऐसा दे दो दर्द मुझे तुम
मेरा गीत दीया बन जाए!!
 
बहे पसीना जहां, वहां
हरयाने लगे नई हरियाली,
गीत जहां गा आय, वहां
छा जाए सूरज की उजियाली
 
हंस दे मेरा प्यार जहां
मुसका दे मेरी मानव-ममता
चन्दन हर मिट्टी हो जाए
नन्दन हर बगिया बन जाए।
 
ऐसा दे दो दर्द मुझे तुम
मेरा गीत दीया बन जाए!!
 
उनकी लाठी बने लेखनी
जो डगमगा रहे राहों पर,
हृदय बने उनका सिंघासन
देश उठाए जो बाहों पर
 
श्रम के कारण चूम आई
वह धूल करे मस्तक का टीका,
काव्य बने वह कर्म, कल्पना-
से जो पूर्व क्रिया बन जाए!
 
ऐसा दे दो दर्द मुझे तुम
मेरा गीत दीया बन जाए!!
 
मुझे श्राप लग जाए, न दौडूं
जो असहाय पुकारों पर मैं,
आंखे ही बुझ जाएं, बेबेसी
देखूं अगर बहारों पर मैं
 
टूटे मेरे हाथ न यदि यह
उठा सकें गिरने वालों को
मेरा गाना पाप अगर
मेरे होते मानव मर जाए!
 
ऐसा दे दो दर्द मुझे तुम
मेरा गीत दीया बन जाए!!

3. नींद भी मेरे नयन की...
 
प्राण! पहले तो हृदय तुमने चुराया,
छीन ली अब नींद भी मेरे नयन की।
 
बीत जाती रात हो जाता सवेरा,
पर नयन-पंछी नहीं लेते बसेरा,
बन्द पंखों में किये आकाश-धरती,
खोजते फिरते अंधेरे का उजेरा।
 
पंख थकते, प्राण थकते, रात थकती
खोजने की चाह पर थकती न मन की,
छीन ली अब नींद भी मेरे नयन की।
 
स्वप्न सोते स्वर्ण तक अंचल पसारे,
डालकर गल-बांह भू-नभ के किनारे,
किस तरह सोऊं मगर मैं पास आकर,
बैठ जाते हैं उतर नभ से सितारे।
 
और हैं मुझको सुनाते वह कहानी
हैं लगा देते झड़ी जो अश्रु-धन की।
छीन ली अब नींद भी मेरे नयन की
सिर्फ क्षण भर तुम बने मेहमान घर में,
पर सदा को बस गये बन याद उर में,
रूप का जादू दिया वह डाल मुझ पर,
आज मैं अनजान अपने ही नगर में।
 
किन्तु फिर भी मन तुम्हें ही प्यार करता,
क्या करूं आदत पड़ी है बालपन की।
छीन ली अब नींद भी मेरे नयन की
 
पर न अब मुझको रुलाओ और ज्यादा,
पर न अब मुझको मिटाओ और ज्यादा,
हूं बहुत मैं सह चुका उपहास जग का,
अब न मुझ पर मुस्कराओ और ज्यादा।
 
धैर्य का भी तो कहीं पर अन्त है प्रिय!
और सीमा भी कहीं पर है सहन की।
छीन ली अब नींद भी मेरे नयन की।

4. मेरा नाम लिया जाएगा
 
आंसू जब सम्मानित होंगे, मुझको याद किया जाएगा
जहां प्रेम का चर्चा होगा, मेरा नाम लिया जाएगा
 
मान-पत्र मैं नहीं लिख सका, राजभवन के सम्मानों का
मैं तो आशिक़ रहा जन्म से, सुंदरता के दीवानों का
लेकिन था मालूम नहीं ये, केवल इस गलती के कारण
सारी उम्र भटकने वाला, मुझको शाप दिया जाएगा
 
खिलने को तैयार नहीं थी, तुलसी भी जिनके आंगन में
मैंने भर-भर दिए सितारे, उनके मटमैले दामन में
पीड़ा के संग रास रचाया, आंख भरी तो झूम के गाया
जैसे मैं जी लिया किसी से, क्या इस तरह जिया जाएगा
 
काजल और कटाक्षों पर तो, रीझ रही थी दुनिया सारी
मैंने किन्तु बरसने वाली, आंखों की आरती उतारी
रंग उड़ गए सब सतरंगी, तार-तार हर सांस हो गई
फटा हुआ यह कुर्ता अब तो, ज़्यादा नहीं सिया जाएगा
 
जब भी कोई सपना टूटा, मेरी आंख वहां बरसी है
तड़पा हूं मैं जब भी कोई, मछली पानी को तरसी है
गीत दर्द का पहला बेटा, दुख है उसका खेल-खिलौना
कविता तब मीरा होगी जब, हंसकर ज़हर पिया जाएगा। 

5. मुझे न करना याद... 
 
मुझे न करना याद, तुम्हारा आंगन गीला हो जाएगा।
रोज़ रात को नींद चुरा ले जाएगी पपीहों की टोली,
रोज़ प्रात को पीर जगाने आएगी कोयल की बोली।
 
रोज़ दुपहरी में तुमसे कुछ कथा कहेंगी सूनी गलियां,
रोज़ सांझ को आंख भिगो जाएंगी वे मुरझाई कलियां।
यह सब होगा, पर न दुखी होना तुम मेरी मुक्त-केशिनी!
 
तुम सिसकोगी वहां, यहां पग बोझीला हो जाएगा,
मुझे न करना याद, तुम्हारा आंगन गीला हो जाएगा।
 
कभी लगेगा तुम्हें कि जैसे दूर कहीं गाता हो कोई,
कभी तुम्हें मालूम पड़ेगा आंचल छू जाता हो कोई।
कभी सुनोगी तुम कि कहीं से किसी दिशा ने तुम्हें पुकारा,
कभी दिखेगा तुम्हें कि जैसे बात कर रहा हो हर तारा।
पर न तड़पना, पर न बिलखना, पर न आँख भर लाना तुम!
 
तुम्हें तड़पता देख विरह शुक और हठीला हो जाएगा,
मुझे न करना याद, तुम्हारा आंगन गीला हो जाएगा।
 
याद सुखद बस जग में उसकी, होकर भी जो दूर पास हो,
किन्तु व्यर्थ उसकी सुधि करना, जिसके मिलने की न आस हो।
मैं अब इतनी दूर कि जितनी सागर में मरुथल की दूरी,
और अभी क्या ठीक कहां ले जाए जीवन की मजबूरी।
गीत-हंस के साथ इसलिए मुझको मत भेजना संदेशा,
 
मुझको मिटता देख तुम्हारा स्वर दर्दीला हो जाएगा,
मुझे न करना याद, तुम्हारा आंगन गीला हो जाएगा।
 
मैंने कब यह चाहा, मुझको याद करो, जग को तुम भूलो?
मेरी यही रही ख्वाहिश बस मैं जिस जगह झरूं तुम फूलो।
शूल मुझे दो, जिससे वह चुभ सके न किसी अन्य के पग में,
और फूल जाओ, ले जाओ, बिखराओ जन-जन के मग में।
यही प्रेम की रीति कि सब कुछ देता, किन्तु न कुछ लेता है,
 
यदि तुमने कुछ दिया, प्रेम का बंधन ढीला हो जाएगा,
मुझे न करना याद, तुम्हारा आंगन गीला हो जाएगा।

5 फिल्म गीत : Filmi Song 
 
1. फिल्‍म- प्रेम पुजारी (1970)
 
फूलों के रंग से, दिल की कलम से...
 
फूलों के रंग से, दिल की कलम से
तुझको लिखी रोज़ पाती
कैसे बताऊं, किस किस तरह से
पल पल मुझे तू सताती
तेरे ही सपने, लेकर के सोया
तेरी ही यादों में जागा
तेरे खयालों में उलझा रहा यूं
जैसे के माला में धागा
 
हां, बादल बिजली चंदन पानी जैसा अपना प्यार
लेना होगा जनम हमें, कई कई बार
हाँ, इतना मदिर, इतना मधुर तेरा मेरा प्यार
लेना होगा जनम हमें, कई कई बार
 
सांसों की सरगम, धड़कन की वीना, 
सपनों की गीतांजली तू
मन की गली में, महके जो हरदम,  
ऐसी जुही की कली तू
छोटा सफ़र हो, लम्बा सफ़र हो, 
सूनी डगर हो या मेला
याद तू आए, मन हो जाए, भीड़ के बीच अकेला
हाँ, बादल बिजली, चंदन पानी जैसा अपना प्यार
लेना होगा जनम हमें, कई कई बार
 
पूरब हो पच्छिम, उत्तर हो दक्खिन, 
तू हर जगह मुस्कुराए
जितना भी जाऊं, मैं दूर तुझसे, 
उतनी ही तू पास आए
आंधी ने रोका, पानी ने टोका, 
दुनिया ने हंस कर पुकारा
तसवीर तेरी, लेकिन लिए मैं, कर आया सबसे किनारा
हां, बादल बिजली, चंदन पानी जैसा अपना प्यार
लेना होगा जनम हमें, कई कई बार
 
हां, इतना मदिर, इतना मधुर तेरा मेरा प्यार
लेना होगा जनम हमें, कई कई बार
कई, कई बार... कई, कई बार ...। 

2. फिल्म- अज्ञात (1970) 
 
काल का पहिया घूमे भैया...
 
काल का पहिया घूमे भैया
लाख तरह इंसान चले
ले के चले बारात कभी तो
कभी बिना सामान चले
राम कृष्ण हरि ...
 
जनक की बेटी अवध की रानी
सीता भटके बन बन में
राह अकेली रात अंधेरी
मगर रतन हैं दामन में
साथ न जिस के चलता कोई
उस के साथ भगवान चले
राम कृष्ण हरि ...
 
हाय री क़िस्मत कृष्ण कन्हैया
स्वाद न जाने माखन का
हँसी चुराए फूलों की वो
कंस है माली उपवन का
भूल न पापी मगर पाप की
ज्यादा नहीं दुकान चले
राम कृष्ण हरि ...
 
अजब है कैसी प्रभु की माया
माला से बिछुड़ा दाना
ढूंढे जिसे मन सामने है वो
जाए न लेकिन पहचाना
कैसे वो मालिक दिखे तुझे जब
साथ तेरे अभिमान चले
राम कृष्ण हरि ...
 
कर्म अगर अच्छा है तेरा
क़िस्मत तेरी दासी है
दिल है तेरा साफ़ तो प्यारे
घर में मथुरा काशी है
सच्चाई की राह चलो रे
जब तक जीवन प्राण चले
राम कृष्ण हरि ...। 

3. फिल्म- शर्मीली (1971)
 
ओ मेरी ओ मेरी ओ मेरी शर्मीली...
 
ओ मेरी ओ मेरी ओ मेरी शर्मीली
आओ ना तरसाओ ना
ओ मेरी ओ मेरी ओ मेरी शर्मीली
 
तेरा काजल लेकर रात बनी, रात बनी
तेरी मेहंदी लेकर दिन उगा, दिन उगा
तेरी बोली सुनकर सुर जागे, सुर जागे
तेरी खुशबू लेकर फूल खिला, फूल खिला
जान-ए-मन तू है कहां
ओ मेरी...
 
तेरी राहों से गुज़रे जब से हम, जब से हम
मुझे मेरी डगर तक याद नहीं, याद नहीं
तुझे देखा जब से दिलरुबा, दिलरुबा
मुझे मेरा घर तक याद नहीं, याद नहीं
जान-ए-मन तू है कहां
ओ मेरी...
 
ओ नीरज नयना आ ज़रा, आ ज़रा
तेरी लाज का घूंघट खोल दूं, खोल दूं
तेरे आंचल पर कोई गीत लिखूं, गीत लिखूं
तेरे होंठों में अमृत घोल दूं, घोल दूं
जान-ए-मन तू है कहां
ओ मेरी...

4. फिल्‍म- पहचान (1971)
 
बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं...
 
बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं
आदमी हूं आदमी से प्यार करता हूं
 
एक खिलौना बन गया दुनिया के मेले में
कोई खेले भीड़ में कोई अकेले में
मुस्कुरा कर भेंट हर स्वीकार करता हूं
आदमी हूं आदमी से प्यार करता हूं...
 
मैं बसाना चाहता हूं स्वर्ग धरती पर
आदमी जिस में रहे बस आदमी बनकर
उस नगर की हर गली तैय्यार करता हूं
आदमी हूं आदमी से प्यार करता हूं...
 
हूं बहुत नादान करता हूं ये नादानी
बेच कर खुशियां खरीदूं आंख का पानी
हाथ खाली हैं मगर व्यापार करता हूं
आदमी हूं आदमी से प्यार करता हूं...। 

5. फिल्म- मेरा नाम जोकर (1972) 
 
ए भाई, ज़रा देखके चलो, आगे ही नहीं पीछे...
 
(ए भाई, ज़रा देखके चलो, आगे ही नहीं पीछे भी
 दायें ही नहीं बायें भी, ऊपर ही नहीं नीचे भी) - 2
ए भाई
 
तू जहां आया है वो तेरा - घर नहीं, गांव नहीं
गली नहीं, कूचा नहीं, रस्ता नहीं, बस्ती नहीं
 
दुनिया है, और प्यारे, दुनिया यह एक सरकस है
और इस सरकस में - बड़े को भी, छोटे को भी
खरे को भी, खोटे को भी, मोटे को भी, पतले को भी
नीचे से ऊपर को, ऊपर से नीचे को 
बराबर आना-जाना पड़ता है 
 
(और रिंग मास्टर के कोड़े पर - कोड़ा जो भूख है
कोड़ा जो पैसा है, कोड़ा जो क़िस्मत है
तरह-तरह नाच कर दिखाना यहां पड़ता है
बार-बार रोना और गाना यहां पड़ता है
हीरो से जोकर बन जाना पड़ता है)- 2
 
गिरने से डरता है क्यों, मरने से डरता है क्यों
ठोकर तू जब न खाएगा, पास किसी ग़म को न जब तक बुलाएगा
ज़िंदगी है चीज़ क्या नहीं जान पाएगा
रोता हुआ आया है चला जाएगा
कैसा है करिश्मा, कैसा खिलवाड़ है
जानवर आदमी से ज़्यादा वफ़ादार है
खाता है कोड़ा भी रहता है भूखा भी
फिर भी वो मालिक पर करता नहीं वार है
 
और इंसान यह- माल जिस का खाता है
प्यार जिस से पाता है, गीत जिस के गाता है
उसी के ही सीने में भोकता कटार है
 
हां बाबू, यह सरकस है शो तीन घंटे का
पहला घंटा बचपन है, दूसरा जवानी है
तीसरा बुढ़ापा है 
 
और उसके बाद - मां नहीं, बाप नहीं
बेटा नहीं, बेटी नहीं, तू नहीं,
मैं नहीं, कुछ भी नहीं रहता है
रहता है जो कुछ वो- ख़ाली-ख़ाली कुर्सियां हैं
ख़ाली-ख़ाली ताम्बू है, ख़ाली-ख़ाली घेरा है
बिना चिड़िया का बसेरा है, न तेरा है, न मेरा है।

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