प्रभु त्रिवेदी के मौसमी दोहे

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सम-सामयिक (वसंत ऋतु)
खट्टी-खट्टी कैरियां, बनती वही रसाल |
कोयल की कूकू चले, जैसे हो करताल ||
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आम्र गुणों की खान-सम, पोषकता प्राचुर्य |
रूप-रंग-मद-गंध है, अम्ल-मिष्ट-माधुर्य ||
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पना-मुरब्बा-लोंजियां, चटनी-छूंद-अचार |
कच्ची अमिया ला रही, मौसम के उपहार ||
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अमिया लटके पेड़ पर, झूल बंधी है डाल |
गौरी के मन में उठे, दो-दो हाथ उछाल ||
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नीलम-लंगड़ा-दशहरी, तोतापुर-बादाम |
तरह-तरह के स्वाद में, सजेधजे हैं आम ||
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तृप्ति प्रदाता आम्रफल, पौषकता भरपूर |
मिटा रहा दौर्बल्य को, रखे लपट से दूर ||
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मंगलसूचक वल्लरी, आम्रकाष्ठ नव-हव्य |
मनोकामना पूर्ण कर, जीवन कर दे भव्य ||
- @ प्रभु त्रिवेदी
(हव्य = {सं. पु.} वह वस्तु जिसकी आहुति किसी देवता के निमित्त हवन में दी जाती है)

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