कविता : क्या रोक पाओगी

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अशोक बाबू माहौर 
चढ़ती धूप को 
कैसे रोकोगी?
क्या खड़े कर पाओगी ?
दीवालें इतनी 
महल अनेकों 
या बांध पाओगी चारों तरफ 
पल्लियां। 
 
क्या अंधेरे में ?
घुटन न होगी तुम्हें 
सच कहूं 
भानु बिना जिंदगी क्या?
संपूर्ण भू 
जीवनचर्या अनाथ सी 
अकेला महसूस करेगी 
उदास हो 
कोसेगी खुद को 
चांद भी 
साथ न देगा
न देगी साथ 
जगमगाती बिजलियां।
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