काव्य संसार : समान धरातल पर

Webdunia
- प्रभा मुजुमदार


 
राम घर चल 
बहुत थक गया है
थोड़ा आराम कर 
 
सुबह अखबार पूरा नहीं पढ़ा
टीवी इत्मीनान से नहीं देखा
फोन पर गप्पे नहीं मारी 
बड़े दिनों से
 
दोस्तों को घर नहीं बुलाया 
ऑफिस का बड़ा टेंशन होता है
थोड़ा सा चेंज चाहिए 
नेट पर सर्फिंग कर
 
एसएमएस पर जोक्स फॉरवर्ड कर 
गर्म चाय की चुस्कियां 
पकौड़ों के साथ लें 
टीवी पर सुन्दर बालाओं को देख
 
पत्नी की झिक-झिक पर 
ध्यान मत दे
बड़बड़ाती रहती है 
आंख मूंद पड़ा रह
 
तू धरती पर सर्वश्रेष्ठ प्राणी है 
इसका अनुभव कर 
 
रमा घर जा
बच्चे बाट जोह रहे हैं 
घर पर चाय का इंतजार हो रहा है 
महरी काम पर नहीं आई 
सब बिखरा-बिखरा है 
 
बच्चों का होमवर्क अधूरा है
उसे पूरा कराना है 
जल्दी घर समेट 
बढ़िया नाश्ता बना 
जल्दी-जल्दी हाथ चला
बहुत काम बाकी है 
 
आराम का नाम मत ले
ये हराम होता है 
अपनी बीमारी पर
छुट्टियां मत ले 
घर पर मेहमान आते हैं
 
तीज-त्योहार
बच्चों के इम्तिहान होते हैं
ऊंची आवाज मत कर 
किसी से अपेक्षा मत रख 
फुर्ती से काम समेट
सुबह जल्दी उठना है। 
 
 
 
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