हिन्दी कविता : कुछ दिल की

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-राकेशधर द्विवेदी
 
तेरी तस्वीर को सीने
से लगाए बैठा हूं
 
मैं हर एक गम को
सीने में छिपाए बैठा हूं
तेरी यादों को आंखों में
सजाए बैठा हूं
 
जिंदगी जख्‍म है तेरे बिना
इस सच को सबको सुनाते
बैठा हूं
 
यह सच है तेरा प्यार
धोखा था मेरे लिए
 
पर मैं तो धोखे को खुदा
माने बैठा हूं
 
तू मंदिर है मेरी
तू मस्जिद है मेरी
 
तू अजान भी है
तू वेदोच्चार भी है
 
तू ही है जिंदगी का बिस्मिल्लाह
तुझे मर्सिये का
अंतिम कलाम माने बैठा हूं। 
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