शकुंतला-ऋषि संवाद : जिसकी यादों में खोई हो...

शम्भू नाथ
ऋषि : जिसकी यादों में तुम खोई हो,
अब तुमको नहीं पहिचानेगा।
तुम उसकी पत्नी लगती हो,
हर्गिज नहीं वह मानेगा।
श्राप तुम्हें देता हूं कन्या,
तुम्हें वक्त तमाचा मारेगा।


 
शकुंतला : माफ करो हे ऋषिराज मैं यौवन संग,
उनके ख्वाबों में खोई थी।
आपकी आहट जान सकूं ना 
उसके वियोग में रोई थी।
ऐसा हमको श्राप न गुरु,
क्यों वक्त तमाचा मारेगा।
 
ऋषि : पहिचान तुम्हारी गायब होगी,
अंगुली की मुंदरी हेरवाओगी।
पैदल चलकर खुद अकेली, 
प्रीतम से मिलने जाओगी।
मांगेगा निशानी दे न सकोगी,
तब वक्त तमाचा मारेगा।
 
शकुंतला : ऐसा अन्याय करो न ऋषिवर,
कर्मों की अभागी बन जाऊं।
पेट में बालक पल रहा है,
क्यों गली-गली दुत्कारी जाऊं।
आप जतन बतलाओ गुरुवर,
कब तक मौसम फटकारेगा।
 
ऋषि : जन्म वीर बालक का होगा,
जंगल में शेरों संग खेलेगा।
उसको अंगूठी मिल जाएगी,
जंगल-जंगल तुम्हें ढूंढेगा।
बालक को पहिचान मिलेगी,
अम्बर से पुष्प की वर्षा होगी।
ईश्वर तुम्हें निहारेगा।
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