हिन्दी कविता : गुमराह

Webdunia
ममता भारद्वाज 
करते रहे ओ हमें गुमराह
और हम उनको ही प्यार की परिभाषा समझ बैठे
करके जिंदगी से बेपनाह अपनों को
हम उनके ही समक्ष हो बैठे
 
देते रहे वो हमें झूठी दिलासा
और प्यासा हम उन्हें ही जिंदगी का समझ बैठे
पग-पग पर करते रहे वो शर्मसार मुझे
और हम दिल अपना उन्हीं के कदमों में जब्त कर बैठे
 
देखते रहे वो खुदगर्ज अपना
और हम उन्हें ही अपना अर्ज समझ बैठे
सहकर हर कदम पर मुश्किलें
हम उन्हें अपना जीवन समझ बैठे
 
मनाते रहे ओ जश्न साथ हमारे 
और हम देख उसे सागर का दरिया समझ बैठे
हर पल हर लम्हा होकर बर्बाद
हम खुद को ही उनके लिए वार बैठे
Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

सोते समय मोबाइल को रखना चाहिए इतनी दूर, जानें क्या है इसका खतरा

रोज खाते हैं इंस्टेंट नूडल्स तो हो जाएं सतर्क! जानें 6 गंभीर नुकसान

क्या आप भी घर पर चलते हैं नंगे पैर? हो सकती हैं ये 5 बीमारियां

बिना काटे घर पर ऐसे बनाएं प्याज का अचार, जानें बेहतरीन फायदे

आपके जीवन के लिए क्यों जरूरी है योग निद्रा, जानें क्या हैं इसके फायदे

सभी देखें

नवीनतम

यह लोकसभा अलग दिखने वाली है, मोदीजी! सब कुछ बदलना पड़ेगा!

सिखों के छठे गुरु, गुरु हर गोविंद सिंह, जानें उनके बारे में

जर्मनी के भारतवंशी रोमा-सिंती अल्पसंख्यकों की पीड़ा

रानी दुर्गावती कौन थीं, जानें उनके बलिदान की कहानी

सेब के सिरके से केमिकल फ्री तरीके से करिए बालों की समस्या का समाधान

अगला लेख
More