हिन्दी कविता : गुमराह

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ममता भारद्वाज 
करते रहे ओ हमें गुमराह
और हम उनको ही प्यार की परिभाषा समझ बैठे
करके जिंदगी से बेपनाह अपनों को
हम उनके ही समक्ष हो बैठे
 
देते रहे वो हमें झूठी दिलासा
और प्यासा हम उन्हें ही जिंदगी का समझ बैठे
पग-पग पर करते रहे वो शर्मसार मुझे
और हम दिल अपना उन्हीं के कदमों में जब्त कर बैठे
 
देखते रहे वो खुदगर्ज अपना
और हम उन्हें ही अपना अर्ज समझ बैठे
सहकर हर कदम पर मुश्किलें
हम उन्हें अपना जीवन समझ बैठे
 
मनाते रहे ओ जश्न साथ हमारे 
और हम देख उसे सागर का दरिया समझ बैठे
हर पल हर लम्हा होकर बर्बाद
हम खुद को ही उनके लिए वार बैठे
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