हिन्दी कविता : इग्नोर...

सुशील कुमार शर्मा
हम लोगों की कद्र नहीं करते
उनके स्नेह को हम तवज्जो नहीं देते
उनकी बातों का जवाब नहीं देते
सोचते हैं क्या जरूरत है।
 
क्यों हम किसी की
भावना को समझें
हमें कौन रिश्ते बनाने हैं
हम किसी और जात के 
हम किसी और प्रांत के
क्या रिश्तेदारी निभानी है
भाड़ में जाए।
 
क्यों इतने पीछे लगा है
क्यों बार-बार पोस्ट करता है
बड़ा ज्ञान बघार रहा है
इन सबके पीछे उसकी 
अपनेपन की मासूम भावनाओं को 
कभी महसूस किया।
 
जब कोई अपने वाला 
तुम्हें इग्नोर करे तब इस 
दुराव का दर्द समझ में आता है
कभी उनसे पूछना जो घर
में अकेले बैठे रहते हैं 
और कोई पूछने वाला नहीं 
होता कि तुम कैसे हो।
 
इसलिए अगर कोई 
तुम्हें तवज्जो दे रहा है
तो कभी उसको इग्नोर 
मत करो
वर्ना एक दिन तुम खुद 
इग्नोर हो जाओगे
खुद की नजर से।
 
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