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कविता: जनकवि
सुशील कुमार शर्मा
मानव हृदय पर राज करे,
वह जनकवि कहलाता है।
सुप्त जगत को जाग्रत करना,
कवि को जनकवि बनाता है।
मृतप्राय: राष्ट्र में,
जो जीवन संचार करे।
सत्य और शब्दों का चितेरा,
संघर्षों से प्यार करे।
सौंदर्य का परम उपासक,
स्वप्न के महल बनाता है।
मानव हृदय पर राज करे,
वह जनकवि कहलाता है।
कमल पत्र की भांति,
कवि होता निर्लेप है।
जीवन के गहरे घावों पर,
अंतर भावों का लेप है।
अंत:स्थल की सुप्त भावनाओं को,
जो धीमे-धीमे सहलाता है।
मानव हृदय पर राज करे,
वह जनकवि कहलाता है।
वर्तमान को चित्रित करता,
और अतीत को गाता है।
सूक्ष्म रूप से जो भविष्य के,
संकेत हमें बतलाता है।
मानव के दुखी हृदय को,
शब्दों से जो बहलाता है।
मानव हृदय पर राज करे,
वह जनकवि कहलाता है।
हृदय धड़कते उसके स्वर में,
जीवन आंदोलित होते।
विश्व प्रेम के अंकुर,
जिसकी कविता में हैं सोते।
आत्मनिष्ठ और शाश्वत दृष्टा,
ईश्वर को जो दिखलाता है।
मानव हृदय पर राज करे,
वह जनकवि कहलाता है।
शिशु सदृश्य जिसका मन होता,
ईश्वर का जो प्रिय होता।
शब्दों की निर्मल धारा से,
हृदय कलुष को जो धोता।
सृष्टि के सौंदर्य को जो,
सबके हृदय में बिठलाता है।
मानव हृदय पर राज करे,
वह जनकवि कहलाता है।
सम्मानों की भीड़ बहुत है,
मंचों पर जो बिकते हैं।
साहित्यिक बाजारों में,
सब खोटे सिक्के चलते हैं।
सबके हृदय में जो बसता है,
वह सम्मान सुहाता है।
मानव हृदय पर राज करे,
वह जनकवि कहलाता है।
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