बाल कविता: दादी मां के घर झूले

प्रभुदयाल श्रीवास्तव
घर की मियारी पर दादी ने,
डाले दो झूले रस्सी के।
 
चादर की घोची डाली है,
तब तैयार हुए हैं झूले।
अब झूलेगी चिक्की-पिक्की,
चेहरे हैं खुशियों से फूले।
 
इन्हें झुलाएंगे दादाजी, 
हुए उमर में जो अस्सी के।
 
छप्पर पर पानी की बूंदें,
खरर-खरर कर शोर मचातीं।
चिक्की-पिक्की झूल रही हैं, 
दादी गीत मजे से गातीं।
 
खाती दोनों चना-कुरकुरे, 
हो-हल्ले होते मस्ती के।
 
दादी मां के घर झूलों की,
चर्चा गली-गली में फैली।
झांक-झांककर गए देखकर, 
मोहन, सोहन, आशा, शैली।
 
हर दिन आने लगे झूलने, 
और कई बच्चे बस्ती के।
 
अब दादीजी बड़े प्रेम से, 
सबको झूला झुलवाती हैं,
एक-एक लोरी गाती हैं।
 
होते रहते मना-मनौव्वल, 
स्वांग रोज गुस्सा-गुस्सी के।  

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

ये किट बनाएगी आपकी छुट्टियों के लुक को स्पेशल और यादगार, नोट कर लें पूरी लिस्ट

समर्स में शरीर की गर्मी बढ़ा देती हैं ये चीजें, पड़ सकते हैं बीमार

kids story : स्टूडेंट का हलवा और ब्रह्म राक्षस

लू लगने के बाद क्या करें? हीट स्ट्रोक से तुरंत राहत पाने के लिए अपनाएं ये 7 आसान होम रेमेडीज

वेट कम करना पड़ा भारी, सर्जरी के बाद महिला हुई पैरालाइज, जानिए क्या हैं इस बैरिएट्रिक सर्जरी के साइड इफेक्ट्स

सभी देखें

नवीनतम

तुम्हारे रेप के लिए तुम खुद जिम्मेदार, जज की टिप्पणी से फिर मचा बवाल

गीत : महावीर पथ

'हिन्दीयोद्धा डॉ. वेदप्रताप वैदिक' पुस्तक लोकार्पित

सुप्रसिद्ध लेखक मनोज भावुक को बेस्ट राइटर अवार्ड

सिखों के 8वें गुरु, गुरु हर किशन की पुण्यतिथि, जानें उनके बारे में

अगला लेख