हिन्दी कविता : नींव की ईंट

राकेशधर द्विवेदी
मैं नींव की ईंट हूं
दबी हुई पड़ी हुई


 
कराहती बिलखती
कुछ दर्दभरे नगमे सुनाती
 
मेरे ऊपर चढ़ा हुआ है एक कंगूरा
मोटा बेडौल अभिमानी और अधूरा
देखता है मुझे हंस-हंसकर
जैसे जीतकर आया हो वर्ल्ड कप को
 
दिखाकर मुझे बोलता है व्यंग्य से
'तू' है निरर्थक निस्वाद निष्फल सी
मैंने कहा ऐ कंगूरे तू न इतना मुस्करा
झूठे घमंड कर तू न इतना इतरा
 
तू ही प्रतीक मल्टीनेशनल संप्रदाय का
बना हुआ है परजीवी निर्धन समुदाय का
एक दिन तू गिरेगा भरभराकर
जिस दिन मैं पलटूंगी अपनी करवट। 

 
Show comments

ग्लोइंग स्किन के लिए चेहरे पर लगाएं चंदन और मुल्तानी मिट्टी का उबटन

वर्ल्ड लाफ्टर डे पर पढ़ें विद्वानों के 10 अनमोल कथन

गर्मियों की शानदार रेसिपी: कैसे बनाएं कैरी का खट्‍टा-मीठा पना, जानें 5 सेहत फायदे

वर्कआउट करते समय क्यों पीते रहना चाहिए पानी? जानें इसके फायदे

सिर्फ स्वाद ही नहीं सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है खाने में तड़का, आयुर्वेद में भी जानें इसका महत्व

इन विटामिन की कमी के कारण होती है पिज़्ज़ा पास्ता खाने की क्रेविंग

The 90's: मन की बगिया महकाने वाला यादों का सुनहरा सफर

सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है नारियल की मलाई, ऐसे करें डाइट में शामिल

गर्मियों में ये 2 तरह के रायते आपको रखेंगे सेहतमंद, जानें विधि

क्या आपका बच्चा भी चूसता है अंगूठा तो हो सकती है ये 3 समस्याएं