कविता : तीनों बंदरों से बोलो

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आलोक सिंह
तीनों बंदरों से बोलो की वह अब बदल जाएं भी
वक़्त गया है बदल बोलो सुधर जाएं भी
अब नहीं होगा कुछ भी अगर ऐसे ही शांत रहे
गांधी तू भी उठा लाठी तो मंजर बदल जाएं भी

 
बुरा ना देखो मगर देखो तो बोलो भी
बुरा ना सुनो अगर सुनो तो बोलो भी
बुरा ना कहो,अगर कोई कहे तो रोको भी
एक गाल पे चपत लगाए तो पूछो भी
कब तलक शराफत का मुखौटा पहनोगे भी
देख लो तुम भी तो, शरमाओगे भी
हाय ये क्या हो रहा, सोच के घबराओगे भी
था कौन सही जिसने मारा तुम्हें या तुम खुद
हो रही दोनों पर राजनीति ,बताओ तुम भी..
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