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हिंदी कविता : चला सखी घूम आई माई के दुआरे

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राकेशधर द्विवेदी

, गुरुवार, 16 मई 2024 (13:43 IST)
चला सखी घूम आई माई के दुआरे।
मथवा टिकाय आई माई के दुआरे।
चला सखी घूम आई माई के दुआरे।
टिकुई चढ़ाए आई माई के दुआरे।
चला सखी घूम आई माई के दुआरे।
ऊंचे पहाड़ी पर माई क दरबार सजा बा।
ढोल बजत बा जयकारा लगा बा।
चला चुनरी चढाय आई माई के दुआरे।
चला सखी घूम आई माई के दुआरे।
दुनिया में माई के नाम बड़ा बा।
बिंध्याचल माई के धाम बड़ा बा।
भगिया संवार आई माई के दुआरे।
चला सखी घूम आई माई के दुआरे।
माई हमार है दुनिया के महारानी।
दुःख करें दूर भरे झोलियां खाली।
चला नारियल चढ़ाय आई माई के दुआरे।
चला सखी घूम आई माई के दुआरे।

(यहां पर दिए किसी भी कंटेट के प्रकाशन के लिए लेखक/वेबदुनिया की अनुमति/स्वीकृति आवश्यक है, इसके बिना रचनाओं/लेखों का उपयोग वर्जित है...)

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