ये बनावटी मानहानियां, ये बनावटी माफीनामे

डॉ. रामकृष्ण सिंगी
तू दे मुझको गालियां,
में तुझ पर मानहानि का केस करूं। 
(तू बन रामलीला का रावण,
मैं मंच पर राम का भेस धरूं।।)
 
टीवी/ अखबार भरे होंगे
हमारी सनसनियों से, चर्चों से। 
न्यायालयों के समय ज़ाया होंगे,
तो हों, जन-धन के खर्चों से।। 
 
जब सनसनियां खतम हो जायेंगी,
जनता का ध्यान बंट जायेगा। 
आपस में सुलह कर लेंगे हम 
तो अपना क्या घट जायेगा।।
 
पर अब समझ लिया है जनता ने-
 
ये मानहानि के प्रकरण सब 
राजनीतिक धींगा-मस्ती हैं। 
जनता को मूर्ख बनाने की 
आपस की नूरा-कुश्ती हैं।।
 
मान-अभिमान, मान-मनौवल, मान हानि 
मानद-पद, मान-देय ये सब 
अब शब्द हैं राजनीतिक गलियारों के। 
हो गए बिदा ये शब्द सभी 
सामान्य-जन की जीवन-धारों से।।
 
राजनीति वाले इन्हें गले लगाए हुए 
अपनी गफलत में जी रहे हैं। 
आम-जन तो अपनी धुन में खोए 
जीवन का चाक गरेबां सी रहे हैं।।

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