हिंदी कविता : प्रकृति धर्म

डॉ. किसलय पंचोली
प्रकृति धर्म हमसे बेहतर हैं
प्रकृति धर्म हमसे बेहतर हैं,
बारिश के दिनों में उग आते
बहुरंगी या बदरंगी कुकुरमुत्ते
या गर्म नंगी चट्टान पर
जड़े जमाते सुगंधित पत्थर फूल
या सही समय पर नमी पा
फूट उठतीं आम के फेंकी हुई गुठलियाँ
या टूटे गमलों के ठहरे हुए पानी में
तेजी से फैलते मच्छरों के कुनबे
या उजाड़ बागड़ के काँख में
घोंसले संजोते गोरैया के जोड़े
हमसे बेहतर हैं

कुकुरमुत्ते, पत्थरफूल, गुठली, मच्छर और गोरैया!
नहीं है इनके पास
मानव जितना विकसित मस्तिष्क
पर ये सब के सब
अपना प्रकृति धर्म निभाना जानते हैं
संतुलन की नैसर्गिक तुला में
अपने तई कोई दोष नहीं आने देते

और हम मानव ?
कुदरत की सबसे सक्षम प्रजाति ?
बतौर वैज्ञानिक होमियो सेपीयंस ?
चाहते हैं बांट-बटखरे हों हमारे,
मनमर्जी डंडी हम मारें,
चाहें तो तोलें न चाहें तो न तोलें!
सिर्फ अपने ही स्वार्थ की आंधी दौड़ में पागल
विकास के नाम पर, आवास के नाम पर
लेते हैं प्रकृति से प्रजातियों की बलि !
भूल चुके हैं हम कि और जीवित की तरह हम भी
शासक नहीं, हैं प्रकृति के अंश !

बेशक, हम हो सकते हैं
कुकुरमुत्ते, पत्थरफूल, आम की गुठली, मच्छर और गौरेया से
लाख-लाख गुना बेहतर
गर हम फिर सुनिश्चित कर पाएं
अपना भूला-बिसरा प्रकृति धर्म

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