कविता : माहौल देश का

Webdunia
रवि श्रीवास्तव
 
देश का है माहौल गरमाया, 
कहकर लोगों ने सम्मान लौटाया। 
कभी बीफ का मुद्दा आया, कभी जातिवाद से ध्यान भटकाया। 
 
क्या यही चुनावी मुद्दे हैं, क्या यही विकास की बातें हैं?
एक दूसरे को कोसने को, डिबेट में बैठ वो जाते हैं। 
 
क्या परिभाषा है विकास की, कहां रहे अब तक खोए?
इतने दिन तक राज किए थे, फिर भी गरीब, भूखे नंगे सोए। 
 
रही बात हिंसा को लेकर, पिछली सरकार में भी हुआ। 
मिलकर रहे आपस में हम, ईश्वर से यही करता हूं दुआ। 
 
वाणी पर संयम रखे वो, जिन पर जिम्मेदारी है। 
मूर्ख न समझो यहां किसी को, समझदार ये जनता सारी है। 
 
जो काम नहीं कर पाई गोली, वो बोली से हो रहा है। 
यही सोचकर देश का पड़ोसी, मन ही मन खुश हो रहा है। 
 
देश तरक्की करेगा जब मिलकर साथ चलेगें हम। 
इतना भी सरकार को न कोसो, फर्ज भी अपना निभाओ तुम। 
 
पेड़ हमेशा देता सबको, बिना भेदभाव के छाया। 
देश का है माहौल गरमाया, कहकर लोगों ने सम्मान लौटाया ।। 
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